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________________ ७२ क्षणभंगुर ये मानवदेह से, मानव देह से, • करी लो धर्म सुखकार ... जपी ले ॥४॥ संयम पाकर मुक्ति मिलावो, मुक्ति मिलावो ; दहकर करम कुहार ... जपी ले ।।५।। प्रभु वचनों को सुनकर संयमी, सुनकर संयमी ; बहुत हुए नरनार ... जपी ले ॥६।। अति उपकारी जिनवर ऐसो, जिनवर ऐसो ; और नहीं अवतार ... जपी ले ॥७॥ आतम कमल में धर शैलेशी, धर शैलेशी ; लब्धिसूरि हुए पार ... जपी ले ॥८॥ फलौधी (पोकरण) मंडन श्री संभवनाथ जिन स्तवन तेरे पूजन को गुणवान, मिला है संभवजिन भगवान तुं है राजा तुं शिरताजा, तुं मेरा है महाराजा ; प्रभु का ज्ञान अपरंपार, मिला है संभव जिन भगवान. रे ॥१।। कूड़े विषयों कुडी काया, भवजल में है क्यों फंसाया ; तुं धर ले प्रभु का ध्यान, मिला है संभव जिन भगवान. तेरे ॥२॥ मैंने पाइ तोरी छाया, तब अनुपम सुख है पाया ; गावे गुणीजन तोरा गान, मिला है संभवजिन भगवान .. तेरे ॥३॥ मैं हूं रागी तूं वीतरागी, मोरी शूरता तुमसे लागी ; हमारा जल्दी करो मिलान, मिला है संभवजिन भगवान... तेरे ॥४॥ मेरा आत्म-कमल विकसाया, मैं नगर फलौधी में पाया ; देना लब्धिसूरि शिवदान, मिला है संभवजिन भगवान... तेरे ॥५॥ (४) नाडोल मंडन श्री पद्मप्रभ जिन स्तवन पद्मप्रभ प्यारा, जीवन का है आधार . सम्यक्त्वदायी ज्ञानसुहायी, चारित्र का भी दातार ... पद्मप्रभ ॥१॥ धर भूपति का कुल सुहाया, माता सुसीमा मल्हार. पद्मप्रभ ॥२॥ अडग चारित्र प्रभुजी पाली, पाये केवल उदार. पद्मप्रभ ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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