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________________ गुणानुरागी ' आचार्यश्री लब्धिसूरि जी दूसरों के कार्यों एवं गुणों का अनुमोदना करते नहीं थकते थे। वे विद्वानों का कद्र करना जानते थे। -केशरीचंद जैन, फलौदी कुशल उत्साहवर्द्धक पूज्य आचार्यश्री लब्धिसूरि जी महाराज कार्यकर्ताओं में उत्साहवर्द्धन की अद्भुत क्षमता रखते थे। कार्यकर्ताओं के कार्य की सुन्दर समीक्षा और उनकी अनुमोदना आचार्यश्री की अपनी मौलिक विशिष्टता थी। जोधपुर और फलौदी के महोत्सवों में उन्हें निकट से देखने-समझने का अवसर मिला और उनका हो चला मैं जिन भक्ति में समर्पित होने। - एस०आर० भंडारी धरोहर आशीर्वाद दिल्ली में मुनिश्री लब्धिविजय जी का प्रवचन सुन प्रभावित हुआ। वे आशु कवि थे जिसने मुझे उनके निकट लाया। एक दिन मैंने अपनी कृति “गुलदस्ता" खंड काव्य देकर भूमिका लिख देने का आग्रह किया। उन्हीं दिनों एक प्रवचन में मुनिश्री ने मेरे खंड काव्य की समीक्षा ही कर डाली, मैं गद्गद् था। प्रवचन के बाद भूमिका लिखकर मेरी कृति लौटाते हुए पूज्यश्री ने मुझे सुन्दर रचना के लिए बधाई दी। भूमिका के साथ ही काव्य में कुछ संशोधन भी एक पृष्ठ पर लिखकर सुझाए जिसका परिणाम है कि उस कृति को ६ संस्थानों ने पुरस्कृत किया। आचार्यश्री के साथ मेरा यह चिर स्मरणीय प्रसंग ही मेरी श्रद्धांजलि है। ___ -डॉ० श्रीनिवास मिश्र देश की खुशहाली का चिन्तन __ जैनाचार्य श्री लब्धिसूरि जी से परिचय हुआ आचार्यश्री लक्ष्मण सूरि जी के माध्यम से। भारत की खुशहाली व समृद्धि का उनका अपना चिन्तन था। उनके इस विचार से मैं अधिक प्रभावित हुआ जब उन्होंने कहा “आर्यावर्तनी अक चटकी धूल मां जे सात्विक अणुरेणुओं विलसी रहया छे ते अन्य भूमि मां न थी ज"। -देवीसिंह परमार, मुम्बई अमूल्य थाती आचार्य लब्धिसूरि जी सही अर्थों में गुरु थे। उनके सौम्य, सरल व्यक्तित्व से जो प्रोत्साहन मिला वह मेरी अमूल्य थाती है। - रमणलाल पी० शाह० अधिवक्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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