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________________ ६५ अन्वेषक, शांति एवं अहिंसा की स्थापना के लिए निरन्तर जूझनेवाले, ज्ञान पिपासा से प्रेरित मनीषी, श्रमण परम्परा में उदार आचार्य, जन-जन के शिक्षक और मानवता के संस्थापक, विचारों में क्रांतिकारी और क्रान्ति में सरल, सच्चे जिन भक्त और ओजस्वी उसके प्रचारक के रूप में पाया है। अंचल अमर रहेगा उनका नाम आचार्य श्रीमद् लब्धिसूरीश्वर जी म० अपने उदात्त गुणों से युग- युग तक अमर रहेंगे और अमर रहेगी उनकी कृतियाँ भी। इतिहास में उनका गौरवपद तमाम लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखा जाने वाला गुरु का पद है। - नन्ददुलारे वाजपेयी प्रेरक आचार्य भगवंत धर्म, न्याय और आगम के सही और शुद्ध रूप को समाज के सामने रखने में पूज्य आचार्य गुरुदेव श्रीमद् लब्धिसूरि जी सदैव अग्रणी रहे हैं। अपनी साधना, त्याग और समर्पित निष्ठा से समाज को उज्ज्वल ज्ञान प्रदान करना आपका जीवन लक्ष्य रहा है। विद्वत्ता के साथ-साथ चारित्र्य गरिमा का दर्शन आपके जीवन का बेहतरीन उदाहरण है। कशल वक्ता, न्यायशास्त्र के विशेषज्ञ एवम् दर्शन के यथार्थ अभिव्यंजक के रूप में आपश्री से सभी परिचित ही हैं। -प्रो. हनुमन्त जाघव हृदय गदगद हो गया : जैन धर्म में पंच-परमेष्ठी का बड़ा महत्व है। अरिहन्त और सिद्ध ये दो देव तत्व हैं और आचार्य, उपाध्याय एवं साधु गुरु तत्व हैं। सिद्ध तो समस्त कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष में विराजमान हो जाते हैं, अत: उनसे तो हम प्रेरणा ही ले सकते हैं। सीधा सम्पर्क स्थापित नहीं कर सकते क्योंकि देह और वाणी का उनमें सर्वथा अभाव है। अरिहन्त धर्म प्रवर्तक होते हैं पर वे सब समय विद्यमान नहीं रहते इसलिए अपने समय के लोगों को धर्मोपदेश दे सकते हैं। हाँ इनकी वाणी से अवश्य दीर्घकाल तक लाभ उठाया जा सकता है। पर उस वाणी को सुरक्षित रखने और प्रचारित करने का काम आचार्यों का है, इसलिए आचार्यों का उपकार बहुत ही महान् है। सारे संघ के वे नेता होते हैं अत: संघ की सार-सम्हाल उन्हीं के द्वारा होती है। उपाध्याय और साधु उन्हीं के शिष्य और आज्ञानुवर्ती होते हैं। समय-समय पर अनेक आचार्यों ने जैन धर्म और साहित्य की महान् सेवा की है और वर्तमान में भी बहुत कुछ शासन सेवा उन्हीं के द्वारा हो रही है। आचार्य विजय लब्धिसूरि इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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