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________________ अल्पनाओं को आत्मसात करता हुआ तथा मानवीय अन्तरंग एवं बहिरंग स्थितियों की मीमांसा करता हुआ आचार्य प्रवर श्रीमद लब्धि सूरि के पदों में स्तवनों के स्तावक हैं जिनमें भक्ति का सौरभ है और है सत् चित्त आनन्द देने वाला सच्चिदानन्दनीय सौरभ। जैन संस्कृति और जैन संस्कारों के परिपथ में परिभ्रमण करते हए ये स्तवन, ये स्तोत्र, ये भावों की सुरभित माला मनुष्य को मानवता के उदात्त सोपानों में पहुँचाने में सहायक हैं इनके पदों में लालित्य है और है संगीत की आत्मा। रागों से गुम्फित ये स्तवन वीतरागी हैं उनमें वैराग्य का पुट है वहीं दूसरी ओर ब्रह्मानंद सहोदर संगीत की मधुरिम-मधुरिम पग ध्वनि। इन पदों की आत्मा के तल में एक विमल प्रकाश से आभासित समग्र संसार एक ऐसे अवर्णनीय दर्शन की कथ्य भूमि को सहज ही देख सकता है जो साधारण जन के लिए सहज नहीं है। इसमें गुम्फित धारणाओं और भावों में जीवन का सार्वभौम लक्ष्य समाहित है। इन स्तवनों में एक सनातनीय नारदीय वीणा का घोष विनय के पदों में श्रद्धा और भक्ति की अविरल धारा के रूप में मिलता है। इस भक्ति नाद में अक्षरा । नाचती है। भावों की भैरवी सिद्धा बनती है। मुमुक्षु क्षणों को सिद्ध कर मानवीय कल्मषता घुलने लगती है और जीवन में एक आध्यात्मिक प्रकाश शनैः शनै: सत् चित् आनंद में उतर कर ज्ञान की अभिवृद्धि करता है। आचार्यश्री लब्धि सूरि जी वर्तमान युग के समर्थ एवं अन्वेषक तथा मनस्वी संत पुरुष थे। जिस विषय को वे अपने प्रतिपादन का केन्द्र बनाते थे उसकी अतुल गहराई में प्रवेश करते थे। काव्य ग्रंथ के प्रारंभ में तीर्थंकर जिन, सिद्ध और संयतों को नमस्कार किया है। पाप-दुश्चरित्र की निंदा करते हुये उनके प्रत्याख्यान पर बल दिया है। ममत्व त्याग को महत्व दिया है। निश्चय दृष्टि से आत्मा ही ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र का रूप है। साधक को मूल गुण और उत्तर गुणों का प्रतिक्रमण करना चाहिए। पापों की आलोचना, निंदा और गर्दा करनी चाहिए। जो निशल्य होता है उसी की शुद्धि होती है, सशल्य की शुद्धि नहीं होती- यही विचार उनके अनेक स्तवनों की मूर्धन्य भाषा है। संसार अशरण भूत है। कामयोगों से कदापि तृप्ति नहीं मिलती अतः पंचमहाव्रत की रचना करता हुआ निदान रहित होकर मरण की प्रतीक्षा करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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