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________________ सम्पादकीय चातुर्मास की फलश्रुति साधु वर्ग का चातुर्मास समाज के लिए एक प्रकाशस्तम्भ के रूप में सिद्ध होता है। समाज यदि सजग और सक्रिय है तो वह प्रभावक साधु संस्था का बेहतर उपयोग कर लेता है । साधु भी अपनी प्रतिभा और क्षमता के साथ समाज में एक नूतन जागरण पैदा कर देता है। अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन की दिशा का निर्धारण भी दोनों के पारस्परिक सहयोग का परिणाम है। चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनी परम पूज्य आचार्यश्री राजयश सूरीश्वर जी का ससंघ चातुर्मास वाराणसी जैन समाज के लिए एक महान् गौरव का विषय है। उनकी दूरदृष्टि और सामर्थ्यवान् साधना ने वाराणसी के इस चातुर्मास को एक नया रूप देने का सफल प्रयत्न किया है। वाराणसी को प्रारम्भ से ही सांस्कृतिक नगरी होने का गौरव प्राप्त है। यहाँ जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों संस्कृतियों ने अपना विकास किया है। तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की जन्मभूमि होने का भी उसे सौभाग्य मिला है। ऋषभदेव और महावीर आदि तीर्थङ्करों के चरणरज भी यहाँ अवश्य ही पड़े होंगे। भेलूपुर, वाराणसी सदियों से तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ की जन्मस्थली के रूप में पूजी जाती रही है। यहाँ मन्दिरों के निर्माण के प्रसङ्ग में हुई खुदाई में प्राप्त जिन मूर्तियों का रूप-स्वरूप यह कहने के लिए पर्याप्त है कि यह क्षेत्र जैन संस्कृति का एक बड़ा समृद्ध केन्द्र था। उसकी आध्यात्मिक गुरुता ने वाराणसी के इतिहास में कुछ नई दिव्य रेखाएँ अङ्कित कर दी हैं। पू. आचार्य राजयश सूरीश्वरजी महाराज सा० एक महायशस्वी और समतावादी साधक हैं। जिनमन्दिर निर्माण और उनकी प्राणप्रतिष्ठा करने वाले जीवन दर्शक हैं। भेलूपुर स्थित श्वेताम्बर जैन मन्दिर के भव्य जीर्णोद्धार भी उनकी ही अनन्य उपासना का फल है। उनकी ही आत्मिक शक्ति से उसकी प्राणप्रतिष्ठा १७ नवम्बर को होने जा रही है। पुराने मन्दिर और नवीन मन्दिर को जिन्होंने देखा है उन्हें अब पुराने स्थल को पहचानने में कठिनाई होगी। नवीन मन्दिर की तो भव्यता देखते ही बनती है। आचार्यश्री के चातुर्मास ने यहाँ एक ऐसा वातावरण पैदा कर दिया है कि दिगम्बर- श्वेताम्बर दोनों समाज एकजुट होकर बिना किसी साम्प्रदायिक भेदभाव से सारा काम कर रहे हैं। पारस्परिक सद्भाव, सहयोग और सहिष्णुता के रंग में रंगा समूचा जैन समाज एकता के सूत्र में बंधा हुआ दिखाई दे रहा है । स्याद्वाद महाविद्यालय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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