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३२ शायद मानपत्र में लिखे हुए गुणों का अंश मेरे में होगा और आप लेखक तथा अनुमोदक शुद्ध गुण श्रद्धालु और सदाचारी होने से अत्यन्त शुद्ध बुद्धि के धारक होंगे, इस शुद्ध बुद्धि ने आप लोगों के लिए उच्च जाति के लिए सूक्ष्म दर्शक (दुर्विन्द) का काम दिया मालूम होता है अर्थात् मेरे परमाणु मात्र गुणों को आपकी बुद्धि ने पर्वत तुल्य देखा और झट जैन समाज में जाहिर कर दिया कि अमुक व्यक्ति अमुक गुण को रखता है। आपकी इस उद्घोषणा में मैं सर्वथा सहमत नहीं हूँ तथा पितृ गुरु आज्ञा और श्रीसंघ के आग्रह को सादर स्वीकृत करता हैं और शासन देव से प्रार्थना करता हूँ कि कर्म क्षयोपन में निमित्त कारण बनकर वह मुझको भविष्य में इस पद के योग्य बनावें।"
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