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________________ २८ थे। मातृश्री ने कौटुम्बिक जनों के साथ आज्ञा प्रदान कर दी। बोरसद में पू. मुनिश्री के प्रवास के दौरान जीवन भाई अपनी चिरंजीवी इच्छा को मूर्तरूप देने आग्रही बने। दीक्षा की तैयारी प्रारंभ हुई किन्त कतिपय लोगों ने विवाद खड़ा कर दिया। शांत प्रकृति, सरल आशयी पूज्य मुनिश्री ने दीक्षा स्थगित कर दी। दीक्षा के कार्य में विघ्न की खबर पूज्य मुनिश्री के प्रवचनों से प्रतिबोधित श्रद्धावंत आशा भाई बकोर भाई पटेल को हुई तो सारी वस्तुस्थिति की जानकारी पूज्यश्री से प्राप्त की और आग्रह कर वे महाराज श्री को गांव बाहर अपने बंगले में ले गए। पटेल ने युक्ति युक्त कार्यवाही की और फिर धूमधाम से जीवन भाई ने दीक्षा ग्रहण की। अब जीवन भाई मुनिश्री जयंतविजय हुए पू. मुनिश्री के शिष्य। कुछ स्थिरता के बाद पू. मुनिश्री ने बोरसद से बिहार किया जब वे निकटवर्ती ग्राम पहुंचे तो बोरसद के जैन-जैनेतरों ने पुन: तुफान खड़ा कर दिया। धर्मपरायण माता लोगों की शांति के लिए जयंतविजय जी को बोरसद ले आईं। जयंतविजय जी किंचित भी विचलित नहीं हुए। वे लोगों के साथ गांव में आ गए और उन्होंने चार आहार का त्याग कर दिया जब तक कि वापस उन्हें उनके गुरु श्री के पास नहीं पहुंचा दिया जाता। सारे प्रयासों की विफलता के बाद विघ्नकारों ने अपने हथियार डाल दिए मुनिश्री जयंत विजय जी के दृढ़ निश्वय के सामने। अंतत: वे ही धूमधाम से सोल्लास गाते-बजाते मुनिश्री जयंतविजय जी को पूज्यश्री के पास पहुंचा दिया और अपने दृष्कृत्यों के लिए क्षमा याचना की। सारा वातावरण धार्मिकता से ओतप्रोत हो उठा। आचार्यश्री की विशालता : संवत् १९८८५-८६ की बात है। पाटण के कुछ विद्वान् जैनेतर धर्मप्रेमी आचार्यश्री लब्धिसूरि के दर्शन करने और उपदेश सुनने की आकांक्षा से समवेत होकर आये। उस समय आचार्यश्री की गंभीर धर्म चर्चा चल रही थी। अनेकानेक लोग उस अमृतपान में तन्मय थे। आचार्यश्री ने आगत ग्रामवासियों को देखा और चर्चा रोक दिया, भोगीलाल डाह्याभाई से बोले भोगी भाई। उठो सामने ब्राह्मण मंडली आ रही है, उन्हें समुचित सत्कार के साथ ले आओ। भोगीलाल भाई दौड़कर उपाश्रय के बाहर आए, उनकी कल्पनानुसार वहाँ कोई ब्राह्मण नहीं था मात्र कुछ शिक्षकादि तितर-बितर आ रहे थे। वे वापस आचार्यश्री के पास लौट आए और कहा “ साहेब, इन आगन्तुकों में एक भी ब्राह्मण नहीं है। ये सभी नौकरी-चाकरी करने वाले शिक्षक व अन्य जाति के लोग हैं। आचार्यश्री गंभीर हो गये और बोले जो सदाशयता के प्रति श्रद्धावान है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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