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________________ १८ पंचमी के दिन रात को आचार्यवर्य महाराज ने अंतिम संथारा पोरिसि" पढ़ाई थी। सूत्र के प्रत्येक शब्दोच्चारण में अनुपम भाववाहिता थी । किसे मालूम था कि यह पोरिसि अंतिम होगी ? लेकिन महापुरुषों को अंतकाल का आकलन सहज भाव से हो जाता है। सदैव जागृत महापुरुष और भी जागृत बनते जाते थे। इस रात में सब लोगों ने आचार्यवर्य के पवित्र कर्णों में नमस्कार महामंत्र सुनाया था। छोटे-छोटे लड़कों से लेकर बुढ्ढे तक सबने यह अनुपम सौभाग्य को फलदायी बनाया था। अंतिम रात्रि में कम से कम हजारों ने यह लाभ उठाया होगा। रात्रि को लगभग आठ से बारह बजे (८-१२) तक यही कार्यक्रम चला होगा । प्रत्येक के मुख से नमस्कार महामंत्र सुनते-सुनते आचार्यवर्य देव तो अनुपम सुख सागर की तरंगो में मस्त थे। आचार्यवर्य के मुखारविंद पर कृतार्थता की आनंद रेखा स्पष्ट प्रतीत होती थी। जीवन के क्षण-क्षण का उपयोग शासन की सेवा में करनेवाले को अन्त समय में भी क्या व्याकुलता हो सकती है ? अंतिम समय को सार्थक करने के लिये कब से ही आचार्यवर्य सब तरह से सज्ज हो चुके थे। न आपको शिष्यों की चिंता थी, न आपको देह की ममता थी। अजातशत्रु जैसे आप के जीवन में न कोई शल्य अवशिष्ट था। आपके निकटवर्ती शिष्य ने कहा गुरुदेव । अब मृत्यु राक्षस ने आपको मुख में ले लिया है, दांत दबाने की ही देर है । "" (( (" आचार्यवर्य ने कहा मैं सब तरह से सज्ज हूँ, उनको दांत दबाने दो" । यह दृढतम् निश्चल वाणी में जीवन सार्थकता का मधुर संगीत ध्वनित हो रहा था। मानो कि आप नियत धर्म का सत्कार करने के लिये साज सजाकर तैयार हो चुके थे। जन-जन को मुदित करनेवाले यह महात्मा मृत्यु को भी अधिक नाराज करना नहीं चाहते थे। आखिर मृत्यु ने अपनी तीक्ष्ण दाढ़ाओं को स्पंदित किया। ठीक चार बजकर तीस से भी अधिक समय हो चुका था । नमस्कार महामंत्र को मंद स्वर से ध्वनित करता हुआ चतुर्विध संघ निर्निमेष नयनों से आचार्यवर्य की श्वासोच्छवासगति को निहार रहा था। जीवनभर चलते रहे फेफड़े भी अब आराम चाहते थे। पसलियां जीवनभर तक रक्तभ्रमण की आवाज से परेशान हो गई थीं, वे भी अब शांति चाह रही थीं। उर्ध्वगामि आत्मा देह पिंजरे से छूटकर उड़ान करना चाहता था। केवल उपस्थित भक्तगण ही कुछ और सोच रहे थे। आखिर का एक प्रयत्न से फेफड़ों ने श्वासोच्छवास को एक विलक्षण रूप दे दिया। उपस्थित सर्व भक्तगण आचार्यवर्य के प्राण की उर्ध्वगति को देखते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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