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________________ को ज्ञान अजीर्ण नहीं होता है किंतु अत्युत्तम पाचन होता है। ज्ञान का पाचन एक विरल सिद्धि है। आपने अनंत गुणराशि का जनक एक गुण, गुणनुराग को तो आत्मसात् कर ही लिया था। __क्या स्वशिष्य, क्या परशिष्य, क्या लघु वयस्क, क्या दीर्घपर्यायी, क्या श्रावक, क्या श्राविका, क्या बालक, क्या बालिका प्रत्येक आत्मा में से आपको गुणान्वेषण करना सहज था। प्रथम परिचय में ही जब सामने उपस्थित व्यक्ति आचार्यवर्य के पुनीत मुख से खुद का गुणानुवाद सुनता तो आश्चर्य सागर में डूब जाता। इस गुणानुवाद में मिथ्या प्रशंसा का स्वर एक भी नहीं होता था। क्योंकि मिथ्या प्रशंसक धूर्त एवं स्वार्थी ही होते हैं। आपकी सरलता के प्रभाव से धूर्तता और आपकी निष्परिग्रहता से स्वार्थ सैकड़ों कोस दूर भागता था। अतएव आप सच्चे अर्थ में गुणानुरागी थे। आपका यह गुण जनजन में इतना प्रसिद्ध है कि आप आज भी कोई परिचित श्रावक से पूछेगे कि आप आचार्य लब्धिसूरीश्वरजी महाराज को जानते हो? वह व्यक्ति आपको सबसे प्रथम आचार्यवर्य का गुणानुराग का दृष्टांत कथन किये बिना नहीं रह सकेगा। इस कारण से आप सच्चे आराधक आत्माओं के लिये परम श्रद्धेय बन चुके थे। दिगम्बर भाइयों के साथ सफल शास्त्रार्थ करनेवाले आचार्यवर्य को जब दिगम्बर भाई भी गुरु मानकर सम्मान देते थे तब तो कहना ही होगा कि आपके प्रबल गुणानुराग से आपकी सिद्धांतनिष्ठा कभी व्यक्ति द्वेष में या गणद्वेष में परिणत नहीं हुई थी। साथमें रहनेवाले शिष्य भक्ति-भाव से आपका विनय एवं आदर करते थे। क्योंकि आपका प्रबल गुणानुराग सबके प्रति वात्सल्य पैदा करने में प्रतिपल सफल रहता था। आपके कालधर्म (देहांत) के बाद जो चिठ्ठियाँ हमें प्राप्त हुई हैं, उन सबसे मानना पडता है कि आप प्रत्येक जनता के हृदय में विशिष्ट स्थान पर आरुढ़ थे। अत: इतना ही कहना है “गुणी च गुणरागी च सरलो विरलो जनः” उक्ति के अनुसार आप इस संसार की विरलतम आत्माओं में भी मूर्धन्य थे। सहनशीलता : 'उपसमं खु सामन्नं' साधुत्व की एकशाब्दिक शास्त्र व्याख्या है, उपशम-सहनशीलता। सहनशीलता ज्ञानादिगुणनिचय का यथायोग्य पाचन और दु:खों की लापरवाही से निष्पन होती है। आरंभ से सहनशील आचार्यवर्य की सहनशीलता ज्ञान एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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