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कर्मों का खूब यहां घेरा है, क्यों मानत मेरा मेरा है..२
ऐ काया नश्वर तेरी है, एक दिन वो राख की ढेरी है जहां मोह का खूब अंधेरा है, क्यों मानत मेरा मेरा है तु..३ __ बुरी ए दुनियादारी है, दुःख जन्म मरण की क्यारी है
दु:ख दायक भव का फेरा है, क्यों मानत मेरा मेरा है..४ गति चार की नदी में जारी है, भवसागर बड़ा ही भारी है,
ममतावश वहां बसेरा है, क्यों मानत मेरा मेरा है..५ मन आत्म कमल में जोड़ लियो, लब्धि माया को छोड़ दियो, गुण मस्तक संजम शेरा है, क्यों मानत मेरा मेरा है..६
(७३) थोड़ी तेरी जिंदगी है, क्यों तूं युमाता है जिंदगी में बंदगी तो, प्रभुजी का नाम है..१ विषयों को छोड़ यार, जोड़ प्रभुजी से प्यार ज्ञान में गुलतान हो जा, यही सुखधाम है..२ जिसमें हे फनाह तेरा, कहा भाई मान मेरा, बिजली विकास जैसा, नहिं थिर छाम है..३ - धन धान मान तान, क्षण में विनाशी जाण डाभ की अणीपें लगे, बुंद ज्युं तमाम है..४
भज भज जिनदेव, तज सब खोटी टेव शिवपुर धाम में फिर, तेरा तो मुकाम है..५
कमल विकासी चहेरा, रहे हरदम तेरा आतम लब्धि जो लाभे, यही तेरा काम है..६
(७४) चेतन क्यों भव में भटकता है, ..." विषयपान कर गर्भो में, क्यों उंधा लटकता है
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