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(६०) जिनवर नावरिया, नैया पार लगादे रे जिन ०
_भक्ति का रंग लगादे रे, जीना दो दिन का दु:खी है दुनिया दुःख खजाना, कहीं है हंसना कहीं है रोना,
रहा झमेला जमाय रे ..१ मिलने वाले मिलो प्रभु से, पार लगा दे प्रभु भव जल से,
जैसे ही नाविक नैया ..२ जग माया के पास फंसाना, केइ मुझाना, केइ लुभाना,
जीवन युं ही गवाया रे ..३ यह संसार मुसाफिर खाना, फिर-फिर आना, फिर-फिर जाना,
___ भक्ति सरिता बहाय रे ..४ कर्म पंजर में नहीं फसाना, आत्म-कमल में लब्धि बसाना,
मुक्ति नगर मिल जाय रे ..५
दिल में जो जिनवर का, सिमरण किया होता, तो हमको न दुनिया का, यह दुःख सहना होता ..१ अब जिनवर के सिवा, कोई दिल में नहीं बसता, वो जान के जीवन है, शरण ही लिया होता ..२
मालूम अगर जो होता, वे देव के हैं देवा, दिल से लगा ही लेता, तजता कभी न देवा ..३
तूं है मेरा ही मेरा, ऐसा ही वचन देना, आतम कमल में जिनजी, हमेशा मेरे रहना ..४ इतना जो दे दो हमको, उपकार तेरा बहना, लब्धिसूरि ही तेरा, आधार दिल में लेना ..५
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