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________________ कोइ मांगे राजपाट, कोइ मांगे ठाट कोइ मांगे स्वर्गवाट, चाहुं मुक्ति घाट ॥४॥ नीति मांगु रीति मांगु, मांगु प्रीति धाम, आत्म-कमल लब्धि मीले, मील गया तमाम ॥५॥ (३९) रखो प्रभु का ख्याल मनमें, रखो प्रभु का ख्याल यही, यही पुनित है भव तरने को, वीर प्रभु प्रतिपाल ।।१।। इस करमन की लखलीला में, लाखो हैं कंगाल, चडती, पडती, हंसती, रोती, टेढ़ी इसकी चाल ॥२॥ नाम रटन है दुःख का नाशक, नाम रोज संभाल, कर्म के कांटे चूर चूर जावे, जीवन हो उजमाल ।।३।। आत्म-कमल में केवल महके, मीटे कर्म जंजाल, मुक्ति पहुंचने पर यह लब्धि, होगा माला माल ।।४।। (४०) भजो महावीर के चरणों, छुडा देगा जन्म मरणो, जगत में देव आत्मी है, सुख सबसे निराली है, सुखों के है वशीकरणों, छुटा देगा जनम मरणों ॥१॥ जिन्होंने राज्य को छोडा, स्त्रियादिक से भी मुंह मोड़ा, जगत अन्धेर के हरणो, छुटा देगा जनम मरणों ॥२॥ राग जिसमें नहिं लवलेश, नहिं किसी से है उनको द्वेष, सेवो ए देव जगतरणो, छुटा देगा जनम मरणों..३ - महामोहे जगत जीता, इन्हें इसको हरा दीत्ता, सदा शिव लब्धि के वरणो, छुटा देगा जनम मरणों ।।४।। श्रीवीर जिन स्तवन मैं कैसे आवं प्रभुजी तुम्हारे दरबार.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525041
Book TitleSramana 2000 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2000
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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