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देव हुआ।
इधर पार्श्वनाथ का मन वैराग्य की ओर बढ़ा और उन्होंने श्रमण दीक्षा ले ली। एकान्त में उन्हें ध्यान करते हुए देखकर बदला लेने की दृष्टि से मेघमाली ने उन पर घनघोर उपसर्ग किये। वहीं धरणेन्द्र-पद्मावती ने उसी तरह भगवान् की सुरक्षा की। भगवान् भी उन उपसर्गों से तनिक भी विचलित नहीं हुए। फलत: उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। उसके बाद उन्होंने लाखों लोगों को धर्मोपदेश दिया और लगभग सौ वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया। ___भगवान् पार्श्वनाथ के व्यक्तित्व और सिद्धान्तों का दर्शन जैन, बौद्ध साहित्य में प्रचुर मात्रा में मिलता है। वे 'चाउज्जमधम्म' के प्रवर्तक थे। तथागत बुद्ध ने उनकी परम्परा में दीक्षित होकर कुछ समय तक आध्यात्मिक साधना की थी। बुद्ध के शिष्य सारिपुत्र मौद्गलायन भी बौद्धधर्म में दीक्षित होने के पूर्व पार्श्व-परम्परा के अनुयायी थे। कालान्तर में जैनधर्म की उत्कृष्ट साधना की आराधना करने में असमर्थ होने से भगवान् बुद्ध ने मध्यम मार्ग अपना लिया।
कल्पसूत्र ने विलोम शैली को अपनाकर महावीर के चरित्र को सर्वप्रथम हमारे सामने अलंकारिक शैली में प्रस्तुत किया। इसके बाद क्रमशः तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ, नेमिनाथ आदि तीर्थङ्करों का वर्णन करते हुए अन्त में ऋषभदेव का जीवन चरित्र लिखा। यद्यपि तीर्थंक ऋषभदेव के विषय में हम पीछे लिख चुके हैं पर यहाँ कल्पसूत्र का प्रसंग आने के कारण पुन: उसे संक्षेप में दुहरा रहे हैं। तीर्थङ्कर ऋषभदेव
अवसर्पिणीकाल के तीसरे आरे के पिछले तीसरे भाग में काल के प्रभाव से भोगभूमि का रूप समाप्त होने लगा तब कुलकर व्यवस्था प्रारम्भ हुई। जैन परम्परा के अन्तिम कुलकर नाभिराय हुए। उनकी पत्नी मरुदेवी की कुक्षि में वज्रनाभ का जीव सर्वार्थसिद्धि से च्युत होकर उत्तराषाढ नक्षत्र में प्रविष्ट हुआ। रात्रि के पिछले भाग में मरुदेवी ने चौदह स्वप्न देखे (दिगम्बर परम्परा में यह संख्या १६ है)। उस समय का वातावरण बड़ा शान्त और मनोरम था। चारों दिशाओं में खुशहाली थी मानों कोई नया सूर्य उदित हो रहा हो।
बालक का जन्म होने पर उसका नाम ऋषभदेव रखा गया। उसका वंश इक्ष्वाकु कहलाया। युवक होने पर सुनन्दा और सुमंगला से उसका विवाह हुआ। कालान्तर में सुमंगला से भरत और ब्राह्मी तथा सुनन्दा से बाहुबली और सुन्दरी का जन्म हुआ युगल रूप में। बाद युगल रूप में जन्मे उनके १०० पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं। इनमें भरत की पटरानी अनन्तमति के पुत्र मरीचि के ही जीव ने बाद में महावीर के रूप में जन्म लिया।
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