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________________ ३२ भी इसी प्रकार की कुछ घटनायें सम्बद्ध हैं। बालक के इन नामों में वर्द्धमान और महावीर नाम अधिक प्रचलित हुए। उक्त घटना के पीछे संगमदेव की भूमिका बतायी जाती है। उसने महावीर वर्द्धमान को साधनाकाल में भी अनेक प्रकार के कठोर कष्ट दिये । आमली क्रीड़ा का वर्णन मथुरा शिल्प में उपलब्ध हुआ है। महावीर की बाल लीलाओं का और कोई महत्त्वपूर्ण प्राचीन उल्लेख हमारी दृष्टि में नहीं आया । शिक्षा-दीक्षा महावीर ने अपनी मेधावी प्रतिभा के बल पर बहुत शीघ्र ही ज्ञानार्जन कर लिया। जैन परम्परा के अनुसार वे जन्म से ही मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान के धारी थे। अतः किसी आचार्य के पास उनकी शिक्षा-दीक्षा मात्र व्यावहारिक थी। आचार्य जिनसेन के अनुसार संजयन्त और विजयन्त नामक मुनियों ने तो उनके दर्शन करके ही अपनी शंकायें दूर कर लीं। जो भी हो, यह निश्चित था कि महावीर किशोरावस्था में ही अपूर्व प्रतिभा के धनी, विद्वान् और चिन्तक हो गये थे। यह आश्चर्य का विषय है कि उनकी शिक्षा-दीक्षा के सन्दर्भ में विद्याशाला में गमन तथा इन्द्र के साथ प्रश्नचर्या को छोड़कर कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलते। गार्हस्थिक जीवन राजकुमार वर्द्धमान गृहस्थावस्था में रहते हुए भी भोग- वासनाओं से अलिप्त थे। संसार की गहनता और असारता का अनुभव उन्हें हो चुका था । आध्यात्मिक चिन्तनशीलता अहर्निश बढ़ती चली जा रही थी। इसी अवस्था में उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा गया। स्वभावतः वे इसे कैसे स्वीकारते? माता-पिता का स्नेह - आग्रह और भेद - विज्ञान की प्रकर्षता इन दोनों स्थितियों में सामञ्जस्य कैसे स्थापित किया जाय - यह विकट समस्या महावीर के सामने थी । इस सन्दर्भ में दो परम्परायें उपलब्ध होती हैं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर अन्त में अविवाहित रहने का निर्णय लिया। पर श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार इस परिस्थिति में उन्होंने विवाह करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फलतः वसन्तपुर के महासामन्त समरवीर की प्रिय पुत्री यशोदा के साथ शुभ मुहूर्त में उनका पाणिग्रहण संस्कार हो गया। कालान्तर में वे एक पुत्री के पिता भी हुए जिसका विवाह सम्बन्ध मालि के साथ हुआ था। यह जामालि साधना-काल में कुछ समय तक महावीर का शिष्य भी रहा । ४ वस्तुतः महावीर जैसे वीतरागी और निःस्पृही व्यक्तित्व के लिए विवाह करना अथवा नहीं करना कोई विशेष महत्त्व की बात नहीं है। विवाह किया भी होगा तो वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525038
Book TitleSramana 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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