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________________ १८८ मध्यकालीन गूर्जर साहित्य में फागु काव्य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। विक्रम सम्वत् की चौदहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में इस काव्य का उदय हुआ और बाद के काल में इसका पर्याप्त विकास हुआ। फागु काव्यों की रचना बसन्त ऋतु के निमित्त होती रही । बसन्त ऋतु का सर्वोत्तम मास फाल्गुन माना जाता है और इसी मास के निमित्त बनाया गया काव्य ही फागु काव्य कहा जाता है। प्रस्तुत पुस्तक १४ अध्यायों में विभक्त है। इसके प्रथम अध्याय में फागु काव्य के प्रकार और द्वितीय अध्याय में फागु काव्य के विकास की विस्तृत चर्चा है। तीसरे अध्याय में २२वें तीर्थङ्कर नेमिनाथ पर विभिन्न रचनाकारों द्वारा रचे गये ५० फागु काव्यों का परिचय दिया गया है। चतुर्थ अध्याय में स्थूलिभद्र पर रचे गये ४ फागुकाव्यों का विवरण है। पञ्चम अध्याय में ७ विभिन्न रचनाकारों द्वारा रचित वसंत शृङ्गार के फागु काव्यों का परिचय है। षष्ठ अध्याय में विभिन्न जैन तीर्थों पर रचनाकारों द्वारा रचे गये फागु काव्यों का विवेचन है। सप्तम अध्याय में नेमिनाथ को छोड़कर अन्य तीर्थङ्करों पर रचे गये फागु काव्यों की चर्चा है । अष्ठम व नवम अध्यायों में विभिन्न महापुरुषों एवं आचार्यों पर रचे गये फागु काव्यों को स्थान दिया गया है। १०वें अध्याय में, आध्यात्मिक विषयों पर रचे गये फागु काव्यों का विवेचन है। आगे के अध्यायों में क्रमशः वैष्णव परम्परा के फागु काव्यों, लोककथाविषयक फागु काव्यों, प्रकीर्णक फागु काव्यों और संस्कृत भाषा में रचे गये फागु काव्यों की चर्चा है। पुस्तक के अन्त में अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थ एवं शब्द सूची दी गयी है जिससे इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है। ग्रन्थ का मुद्रण त्रुटिरहित व साज-सज्जा आकर्षक है। गूर्जर फागु साहित्य पर शोधकार्य करने वाले शोधार्थियों के लिये इस ग्रन्थ की उपयोगिता निर्विवाद है। ऐसा उपयोगी ग्रन्थ प्रत्येक पुस्तकालयों के लिए उपयोगी है। ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रणयन तथा उसे उत्तम ढंग से प्रकाशित करने और उसे स्वल्प मूल्य में उपलब्ध कराने के कारण लेखक और प्रकाशक दोनों ही बधाई के पात्र हैं। इतिहासनी अमरबेल ओसवाल (ओसवाल जातिनो इतिहास) : लेखकश्री मांगीलाल भूतोड़िया, प्रकाशक- प्रियदर्शी प्रकाशन, ७, ओल्ड पोस्ट आफिस लेन, कलकत्ता ७००००१; प्रथम संस्करण १९९८ ई०; आकार - डिमाई; पक्की बाइंडिंग; पृष्ठ ४+५६१; मूल्य ४००/- रुपये। श्री मांगीलाल जी भूतोड़िया सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ, कुशल लेखक और प्रखर वक्ता के रूप में विख्यात हैं। अब से लगभग ८ - ९ वर्ष पूर्व उनके द्वारा लिखित इतिहास की अमरबेल ओसवाल (ओसवाल जाति का इतिहास) नामक ग्रन्थ दो भागों में प्रकाशित हो चुका है जिसकी लोकप्रियता से हम सभी सुपरिचित हैं। डॉ० लक्ष्मीमल सिंघवी प्रो० कल्याणमल लोढा. श्री बलवन्त सिंह मेहता. डॉ० रघवीर सिंह आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525038
Book TitleSramana 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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