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________________ कठोर तप किया। बाद में केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण भी प्राप्त किया। ___ भरत-बाहुबली युद्ध की ये सारी घटनायें पोदनपुर में हुई थीं जिसकी अवस्थिति आज भी विवादास्पद बनी हुई है। अधिक सम्भावना यही है कि यह पोदनपुर दक्षिण में होना चाहिए। जहाँ तक आदिनाथ ऋषभदेव के सांस्कृतिक अवदान का प्रश्न है, वे एक संस्कृति विशेष के पुरोधा तो थे ही, साथ ही उन्होंने मानव को सामाजिकता का पाठ भी पढ़ाया। भोगभूमि से कर्मभूमि की ओर आने का समय एक संक्रान्ति काल था और संक्रान्ति काल के वातावरण को अपने अनुरूप बनाना सरल नहीं था। ऋषभदेव ने इस दुरूह कार्य को सरल बना दिया।असि, मसि, कृषि, वाणिज्य-विद्या और शिल्प की शिक्षा के साथ ही चौसठ या बहत्तर कलाओंका अध्ययन भी उनके योगदान के साथ जुड़ा हुआ है। समाज ने इन सारी कलाओं को समरसतापूर्वक आत्मसात किया और परस्परोपग्रहो जीवानाम् के आधार पर अहिंसा और अपरिग्रह की चेतना को नया स्वर दिया। अस्तित्व के प्रश्न को जितनी सुदृढ़ता के साथ यहाँ समाधानित किया गया है वह अपने आप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सह-अस्तित्व और सहभागिता पर आधारित जैनधर्म को प्रस्थापित करने का श्रेय तीर्थङ्कर ऋषभदेव को ही जाता है। उनके द्वारा प्रवेदित सूत्र ही उत्तरकालीन जैनधर्म की आधारशिला रहे हैं। दण्ड-व्यवस्था, राज-व्यवस्था, विवाह-प्रथा, व्यवसाय, खाद्य समस्या का हल, शिक्षा, कला और शिल्प आदि क्षेत्रों में उन्होंने नयी व्यवस्था को जन्म दिया। तीर्थङ्कर अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्म, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमलनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनि सुव्रतनाथ, नमिनाथ, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर तीर्थङ्कर भी इसी परम्परा में हुए है, इनमें से हम यहाँ अन्तिम तीन तीर्थङ्करों द्वारा दिये गये अवदान पर विचार करेंगे। तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि तीर्थङ्कर ऋषभदेव की परम्परा में बाईसवें तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि हुए, जो बड़े प्रभावशाली महापुरुष थे। अनेक जन्मों को पार करने के बाद वे यमुना तट पर अवस्थित शौर्यपुर के राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के पुत्र रूप में जन्मे। यादववंशी समुद्रविजय के अनुज का नाम था वसुदेव, जिनकी दो रानियाँ थीं, रोहिणी और देवकी। रोहिणी के पुत्र का नाम बलराम या बलभद्र था और देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण। श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि की अनेक बाल लीलाएं प्रसिद्ध हैं, शक्ति प्रदर्शन भी अनेक बार हुआ है, जिनमें अरिष्टनेमि सदैव जीतते रहे हैं। यह शायद उनके ब्रह्मचर्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525038
Book TitleSramana 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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