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________________ स्वस्थ होना ही उत्तम तप है तप और आध्यात्मिक स्वास्थ्य संयम जितना गहरा होगा तप उतना ही स्वच्छ होगा। अभी तक सिद्धान्त की बात चलती रही, अब तप से व्यवहार की बात प्रारम्भ होती है। शरीर को मात्र कष्ट देते रहना तप नहीं है। तप तो वह है जहाँ साधक स्वस्थ होकर, मन का मार्जन करने चल पड़ता है। तप का काम है संचित कर्मों की निर्जरा करना और वर्तमान में कर्मों को संचित न होने देना। जिस प्रकार माली पलाश के पत्तों में आम रखकर, पाल लगाकर आम को समय से पहले पका देता है उसी प्रकार तप से कर्मों के फल को समयको पूर्व ही निर्जीर्ण कर दिया जाता है। ज्ञान का सार आचार है, धर्म का सार शान्ति है और जीवन का सार स्वास्थ्य है। श्वास पर ही यह स्वास्थ्य निर्भर करता है। भाव, मन, और शरीर के माध्यम से स्वास्थ्य की सही स्थिति का पता चल जाता है। इनको हम क्रमश: आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य कह सकते हैं। मन के तनाव और शरीर की व्याधियाँ तो दिखाई देती हैं, पर भावों का दर्शन नहीं होता, वे सूक्ष्मतम हुआ करते हैं। हम शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं, उसे ठीक करने के लिए तरह-तरह की दवायें लेते हैं, पर भाव-स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते। होना चाहिए कि हम आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें। आध्यात्मिक स्वास्थ्य के बाधक तत्त्व हैं- आहार, भय, मैथुन और परिग्रह। ये तत्त्व अनन्त बाधाओं और विपत्तियों को आमन्त्रित करते हैं, जिन्हें तपस्वी शान्त मन से और आत्मबल से सहन करते हैं। उसे यदि कोई कोड़े भी लगाये तो वह प्रसन्न मन से सह लेता है। आचाराङ्ग आदि आगम ग्रन्थों में कहा गया है कि काम के जाग्रत होने पर छ: आलम्बनों का उपयोग करना चाहिए- अनशन, रसपरित्याग, ऊनोदर, ग्रामानुगमन और संकल्प-परिवर्तन। ध्यान के साथ इन आलम्बनों का उपयोग करने पर इस प्रकार की बाधायें स्वत: शान्त हो जाती हैं। तप के साथ आहार संयम गहराई के साथ जुड़ा है। यहाँ संयमित आहार का प्रयोग एक विशेष अभ्यास के साथ किया जाता है। जिह्वा के साथ चीनी, नमक और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525038
Book TitleSramana 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1999
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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