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________________ 22 : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १६६७ भाषा न होकर एक संस्कारित कृत्रिम भाषा है। प्राकृत शब्दों एवं शब्द रूपों का व्याकरण द्वारा संस्कार करके जो भाषा निर्मित होती है, उसे ही संस्कृत कहा जा सकता है, जिसे संस्कारित न किया गया हो वह संस्कृत कैसे होगी? वस्तुतः प्राकृत स्वाभाविक या सहज भाषा है और उसी को संस्कारित करके संस्कृत भाषा निर्मित हुई है । इस दृष्टि से प्राकृ मूल भाषा है और संस्कृत उससे उद्भूत हुई है। हेमचन्द्र के पूर्व थारापद्रगच्छीय नमिसाधु ने रुद्रट के काव्यालंकार की टीका में प्राकृत और संस्कृत शब्द का अर्थ स्पष्ट कर दिया है। वे लिखते हैं सकल जगज्जन्तुनां व्याकरणादिभिरनाहित संस्कारः सहजो वचनव्यापारः प्रकृतिः तत्र भवं सैव वा प्राकृत । आरिसवयणे सिद्धं, देवाणं अद्धमागहा वाणी इत्यादि, वचनाद्वा प्राक् पूर्वकृतं प्राकृतम् - बालमहिलादि सुबोधं सकल भाषा निबन्धनभूत वचनमुच्यते । मेघनिर्मुक्तजलमिवैकस्वरूपं तदेव च देशविशेषात् संस्कार करणात् च समासादित विशेषं सत् संस्कृतादुत्तर भेदोनाप्नोति । काव्यालंकार टीका नमिसाधु, २ / १२ अर्थात् जो संसार के प्राणियों का व्याकरण आदिसंस्कार से रहित सहज वचन व्यापार है उससे निःसृत भाषा प्राकृत है, जो बालक, महिला आदि के लिये भी सुबोध है और पूर्व में निर्मित होने ( प्राक्कृत) सभी भाषाओं की रचना का आधार है वह तो मेघ से निर्मुक्त जल की तरह सहज है, उसी का देश प्रदेश के आधार पर किया गया संस्कारित रूप संस्कृत और उसके विभिन्न भेद, अर्थात् विभिन्न साहित्यिक प्राकृतें हैं । सत्य यह है कि बोली के रूप में तो प्राकृतें ही प्राचीन हैं और संस्कृत उनका संस्कारित रूप हैं- वस्तुतः संस्कृत विभिन्न प्राकृत बोलियों के बीच सेतु का काम करने वाली एक सामान्य साहित्यिक भाषा के रूप में अस्तित्त्व में आई । यदि हम भाषा - विकास की दृष्टि से इस प्रश्न पर चर्चा करें तो भी यह स्पष्ट है कि संस्कृत सुपरिमार्जित; सुव्यवस्थित और व्याकरण के आधार पर सुनिबद्ध भाषा है । यदि हम यह मानते हैं कि संस्कृत से प्राकृतें निर्मित हुई हैं, तो हमें यह भी मानना होगा कि मानव जाति अपने आदिकाल में व्याकरण शास्त्र के नियमों से संस्कृत भाषा बोलती थी और उसी से अपभ्रष्ट होकर शौरसेनी और शौरसेनी से अपभ्रष्ट होकर मागधी, पैशाची, अपभ्रंश आदि भाषाएँ निर्मित हुईं। इसका अर्थ यह भी होगा कि मानव जाति की मूल भाषा अर्थात् संस्कृत से अपभ्रष्ट होते-होते ही विभिन्न भाषाओं का जन्म - हुआ, किन्तु मानव जाति और मानवीय संस्कृति के विकास का वैज्ञानिक इतिहास इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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