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________________ श्रमण पुस्तक-समीक्षा युगद्रष्टा आचार्य श्री : अध्ययन और अवदान- लेखक - डॉ० राजेन्द्र मुनि, प्रकाशक -: -श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, शास्त्री सर्कल, गुरु पुष्कर मार्ग, उदयपुर (राज०), प्रथम संस्करण, कुल पृष्ठ-३८४, आकार - डिमाई, मूल्य १००/- रुपये ! प्रस्तुत पुस्तक के लेखक हैं महोपाध्याय डॉ० राजेन्द्र मुनि जी । युगद्रष्टा पूज्य आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी जाने माने संत और चिन्तक हैं। उनकी साहित्य साधना का एक विशाल क्षेत्र है। उनकी विभिन्न महत्त्वपूर्ण रचनाओं पर दिये गये विद्वानों के मतों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि उनकी कौन सी रचना किस ऊँचाई पर है I इस सन्दर्भ में गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्ति याद आती है- "को बड़ छोट कहत अपराध" । विभिन्न अवसरों पर उन महान कृतियों को देखने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उनमें से बहुत तो ऐसी हैं जो अपने आप में पी-एच०डी० शोध-प्रबन्ध के लिए पर्याप्त हैं। यदि आचार्य श्री के चिन्तन और लेखन की विभिन्न विधाओं को एक-एक कर अध्ययन किया जाए तो वे डी० लिट्० शोध प्रबन्धों के लिए पर्याप्त सामग्रियों रखती हैं। परन्तु प्रस्तुत पुस्तक में उन समस्त सामग्रियों को अति संक्षिप्त रूप देकर विवेचित करने का प्रयास किया गया है। इससे एक ओर तो आचार्य श्री की साहित्यिक विशालता के प्रति होने वाला न्याय आशंका की परिधि में आ जाता है वहीं दूसरी ओर गागर में सागर भरने की उक्ति चरितार्थ होती है । लेखक ने आचार्य श्री की रचनाओं में पायी जाने वाली विधाओं को वर्गीकृत करके उनके महत्त्वों पर प्रकाश डालने का सफल प्रयास किया है, जैसे- “उनके ( आचार्य श्री ) समग्र निबन्ध विचारप्रधान, आध्यात्मिक, समीक्षात्मक तथा गवेषणात्मक "सभी उपन्यासों का आधार है पौराणिक, ऐतिहासिक तथा धार्मिक"- पं० देवेन्द्र मुनि शास्त्री लिखित कहानियाँ प्राचीन कहानियों का नवीन संस्करण हैं- “आदि । पुस्तक की भाषा आदि देखने से ऐसा लगता है कि लेखक डॉ० राजेन्द्र मुनि जी के परिचय में प्राप्त यह उक्ति "जब आपका प्रवचन होता है तो ऐसा लगता है आपकी वाणी के द्वारा माँ सरस्वती अवतरित हो रही हैं" सत्य ही है। प्रस्तुत रचना के लिए मुनिश्री को बधाई । पुस्तक की छपाई एवं बाह्याकृति आकर्षक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525032
Book TitleSramana 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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