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जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी : 7
के प्रभाव से मुक्त होना यही सिद्ध करता है कि जैनागमों पर शौरसेनी का प्रभाव दूसरी शती के पश्चात् ही प्रारम्भ हुआ होगा। सम्भवतः फल्गुमित्र (दूसरी शती) के समय या उसके भी पश्चात् स्कंदिल (चतुर्थ शती) की माधुरी वाचना के समय उन पर शौरसेनी प्रभाव आया था, यही कारण है कि यापनीय परम्परा में मान्य आचारांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, निशीथ, कल्प, आदि जो आगम रहे हैं, वे शौरसेनी से प्रभावित रहे हैं। यदि डॉ० टॉटिया ने यह कहा है कि आचारांग आदि श्वेताम्बर आगमों का शौरसेनी प्रभावित संस्करण भी था जो मथुरा क्षेत्र में विकसित यापनीय परम्परा को मान्य था, तो उनका कथन सत्य है क्योंकि भगवती आराधना की टीका में आचारांग, उत्तराध्ययन, निशीथ, आदि के जो संदर्भ दिये गये हैं वे सभी शौरसेनी से प्रभावित हैं। किन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि आगमों की रचना शौरसेनी में हुई थी और बाद में वे अर्धमागधी में रूपान्तरित किये गये। ज्ञातव्य है कि यह माथुरी वाचना स्कंदिल के समय महावीर निर्वाण के लगभग आठ सौ वर्ष पश्चात् हुई थी और उसमें जिन आगमों की वाचना हुई, वे सभी उसके पूर्व अस्तित्व में थे। यापनीयों ने आगमों के इसी शौरसेनी प्रभावित संस्करण को मान्य किया था, किन्तु दिगम्बरों को तो वे आगम भी मान्य नहीं थे, क्योंकि उनके अनुसार तो इस माथुरी वाचना के लगभग दो सौ वर्ष पूर्व ही आगम साहित्य विलुप्त हो चुका था। श्वेताम्बर परम्परा में मान्य आचारांग, सूत्रकृतांग, ऋषिभाषित, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, कल्प, व्यवहार, निशीथ आदि तो ई०पू० चौथी शती से दूसरी शती तक की रचनाएँ हैं, जिसे पाश्चात्य विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। ज्ञातव्य है कि मथुरा का जैन विद्या के केन्द्र के रूप में विकास ई०पू० प्रथम शती से ही हुआ है और उसके पश्चात् ही इन आगमों पर शौरसेनी प्रभाव आया होगा। आगमों के भाषिक स्वरूप में परिवर्तन कब और कैसे?
यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि स्कंदिल की इस माथुरी वाचना के समय ही समानान्तर रूप से एक वाचना वलभी (गुजरात) में नागार्जुन की अध्यक्षता में हुई थी और इसी काल में उन पर महाराष्ट्री प्रभाव भी आया। क्योंकि उस क्षेत्र की प्राकृत महाराष्ट्री प्राकृत थी। इसी महाराष्ट्री प्राकृत से प्रभावित आगम आज तक श्वेताम्बर परम्परा में मान्य हैं। अतः इस तथ्य को भी स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि आगमों के महाराष्ट्री प्रभावित और शौरसेनी प्रभावित संस्करण जो लगभग ईसा की चतुर्थ-पंचम शती में अस्तित्व में आये, उनका मूल आधार अर्धमागधी आगम ही थे। यह भी ज्ञातव्य है कि न तो स्कंदिल की माथुरी वाचना में और न नागार्जुन की वलभी वाचना में आगमों की भाषा
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