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पिप्पलगच्छ का इतिहास
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धर्मशेखरसूरि |
धर्मसागरसूरि 1 धर्मवल्लभसूरि
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यही इस गच्छ से सम्बद्ध प्रमुख साहित्यिक साक्ष्य हैं। धर्मप्रभसूरिशिष्यविरचित पिप्पलगच्छगुरु- स्तुति और पिप्पलगच्छीय उपरोक्त गुर्वावली में धर्मप्रभसूर तक पट्टधर आचार्यों की नामावली और उनका क्रम समान रूप से मिल जाता है। जैसा कि इन दोनों गुर्वावलियों के विवरण से स्पष्ट होता है ये पिप्पलगच्छ की त्रिभवीयाशाखा से सम्बद्ध हैं।
अभिलेखीय साक्ष्य
यद्यपि पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध उपलब्ध सर्वप्रथम अभिलेखीय साक्ष्य वि०सं० १२९१/ई० सन् १२३५ का है, किन्तु वि०सं० १४६५ / ई० सन् १४०९ के एक प्रतिमालेख से ज्ञात होता है कि इस गच्छ के (पुरातन) आचार्य विजयसिंहसूरि ने वि० सं० १२०८ में डीडिला ग्राम में महावीर स्वामी की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी जिसे वि० सं० १४६५ में वीरप्रभसूरि ने पुनर्स्थापित की। " वर्तमान में यह प्रतिभा कोरटा स्थित एक जिनालय में संरक्षित है। यदि उक्त प्रतिमालेख के विवरण को सत्य मानें तो पिप्पलगच्छ से सम्बद्ध प्राचीनतम साक्ष्य वि०सं० १२०८ का माना जा सकता है। इस गच्छ के कुल १७२ लेख मिले हैं जो वि० सं० १७७८ तक के हैं। इनमें १६वीं शती के लेख सर्वाधिक हैं जब कि १७वीं शती का केवल एक लेख मिला है। इनका विस्तृत विवरण इसप्रकार है:पिप्पलगच्छीय मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमाओं पर उत्कण लेखों का विवरण
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क्रमश:.
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