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________________ ६६ : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६ रचित पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति' या पिप्पलगच्छगुर्वावली। संस्कृत भाषा में १८ श्लोकों में निबद्ध इस कृति में रचनाकार ने पिप्पलगच्छ तथा इसकी त्रिभवीया शाखा के अस्तित्व में आने एवं अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इसप्रकार है : सर्वदेवसूरि नेमिचन्द्रसूरि शांतिसूरि महेन्द्रसूर विजयसिंहसूरि देवचन्द्रसूर पदचन्दसून पूर्णचन्द्रसूर जयदेवसूर हेमप्रभसूर जिनेश्वरसूर देवभद्रसूरि धर्मघोषसूरि शीलभद्रसूरि परिपूर्णदेवसूरि विजयसेनसूरि धर्मदेवसूरि (त्रिभवीयाशाखा के प्रवर्तक) धर्मचन्द्रसूरि धर्मरत्नसूरि धर्मतिलकसूरि धर्मसिंहसूरि धर्मप्रभसूरि धर्मप्रभसूरिशिष्य -(नाम-अज्ञात) (पिप्पलगच्छगुरु-स्तुति के रचनाकार) पिप्पलगच्छीय सागरचन्द्रसूरि ने वि०सं० १४८४/ई० सन् १४२८ में सिंहासनद्वात्रिंशिका' की रचना की। कृति के अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत उन्होंने स्वयं को जयतिलकसूरि का शिष्य बतलाया है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525028
Book TitleSramana 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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