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________________ तित्थोगाली (तिर्थोद्गालिक) प्रकीर्णक की गाथा संख्या का निर्धारण : ६३ ५७५ अहेव गया मोक्खं, सुहुमोबंभो० गाहा।। -तिलोयपण्णति । - १४१०। कुल - २ १ से ६ -आदि मंगल तथा १२५८ से १२६१ -अंतिम मंगल । इस प्रकार कुल ९५ गाथाएँ कम करने पर बाकी ११६६ गाथाएँ शेष रहती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए गाथा संख्या को निर्देशित करने वाली गाथा का अर्थ दूसरे तरह से किये जाने पर उपरोक्त ११६६ संख्या पूरी हो जाती है। गाथा और इसका अर्थ इस प्रकार किया जा सकता हैगाथा : तेत्तीसं गाहाओ दोनि सता ऊ सहस्समेगं च । तित्थोगालीए संख्या एसा भणिया उ अंकेणं ।। १२६१।। तेत्तीसं गाहाओ दोनि अर्थात् तेंतीस गाथा का दोगुना = ६६ सता अर्थात् १०० →. सहस्समेंग अर्थात् १००० → इसके साथ एक तथ्य यह है कि जो गाथाएँ दूसरे ग्रन्थों से प्रक्षिप्त नहीं मानी गई हैं उसे ग्रन्थ में से कम नहीं किया जा सकता है। इस दृष्टि से विचार करने पर उपरोक्त गाथाओं में से केवल तित्थोगाली प्रकीर्णक में ही पुनरावृत्त गाथाएँ ही कम करने को बच जाती हैं। जिनकी संख्या २७ है। (इनमें ८४८ वी गाथा की पुनरावृत्ति १२५८वीं गाथा है, जो एक बढ़कर २७ होती है) इसके साथ अंतिम गाथा जो संख्या बताती है, मिलाकर २८ हो जाती है, जिसे १२६१ में से कम करने पर १२३३ गाथाएं शेष रह जाती हैं, इस तरह ग्रन्थ की अंतिम गाथा की पुष्टि भी हो जाती है। सन्दर्भ ग्रन्थ१. नन्दीसूत्र मुनि मधुकर, सूत्र - ७९, पृष्ठ-१६० २. पइण्णयसुत्ताइं भाग १ एवं २ संपा० - मुनि पुण्यविजय महावीर जैन विद्यालय बम्बई ३. समवायांगसूत्र, संपा० - मुनि मधुकर - समवाय - ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525028
Book TitleSramana 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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