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तित्थोगाली (तिर्थोद्गालिक) प्रकीर्णक की गाथा संख्या का निर्धारण : ५९
११२४. सुव्वए १४ य सुपासे १५ य अरहा य सुकोसले १६।
अणंतपासी १७ य अरहा समाहिं पडिदिसंतु मे।। (? पुण्णघोसे १८ महाघोसे १९ सव्वाणंदे २० य केवली। सच्चसेणे २१ य अरहा समाहिं पडिदिसंतु में)
११२५. विमले २२ उत्तरे चेव अरहा य म (? हाब) ले २३ ।
देवाणंदे २४ य अरहा समाहिं पडिदिसंतु में।।
११४७. नंदी १ य नंदिमित्ते २ सुंदरबाहू ३ य तह महाबाहू ४।
अइबल ५ महब्बले ६ या भद्द ७ दिविठू ८ तिविठू ९ य।। ११४८. कण्हा उ, जयंति (तs) जिए १-२ (भद्दे ३) सुप्पभ ४ सुदंसणे ५ चेव।
आणंदे ६ नदंणे ७ पउमे नाम ८ संकरिसणे ९ चेव।।
इस प्रकार अन्य ग्रन्थों से तथा कल्पना से रचित कुल ३० गाथाएँ शामिल किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। इनको निकाल देने के बाद शेष गाथाओं की संख्या १२३३ न रहकर १२३१ ही होती है। इनकी गाथा संख्या के निर्धारण के लिए दूसरी दृष्टि से विचार करने पर समाधान प्रतीत होता है। तित्थोगाली प्रकीर्णक के गाथाओं की पुनरावृत्ति इसी ग्रन्थ में अधिक हुई है। इसके अलावा अन्य प्रकीर्णंकों में भी इसकी गाथाएं मिली हैं। तित्थोगाली प्रकीर्णक में इसकी २७ गाथाओं की पुनरावृत्ति हुई है। जिनमें से एक-८४८ वी गाथा नंदीसूत्र से भी समान है। इसका उल्लेख पहले आ चुका है। इस प्रकार पुनरावृत्त गाथाओं की संख्या २६ है। मूलाचार की एक तथा तिलोयपण्णत्ति की एक गाथा तित्थोगाली में प्राप्त होती है। अन्य पूर्ववर्ती प्रकीर्णकों से इसमें २७ गाथाएँ ली गई हैं ये हैं- देवेन्द्रस्तव से १६ मरणविभक्ति से ५ तंदुलवैचारिक से २, चंदावेज्झय से ३ तथा दीवसागरपण्णत्ति और महापच्चक्खाण से मिलाकर १। आदि मंगल और अंतिम मंगल में कुल दस गाथाएं हैं जिसे इसमें से हटा देने पर कुल ९५ गाथाएं कम हो जाती हैं । इसके बाद प्रस्तुत प्रकीर्णक में मूलरूप से कुल ११६६ गाथाएं रह जाती हैं। इन
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