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श्रमण
तित्थोगाली (तिर्थोद्गालिक) प्रकीर्णक की गाथा
संख्या का निर्धारण
अतुल कुमार प्रसाद सिंह जैन आगम साहित्य मुख्यत: दो वर्गों में विभक्त है- अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य। अंग प्रविष्ट में प्राचीन परम्परा के अनुसार और वर्तमान में भी (बारहवें दृष्टिवाद अंग के विलुप्त होने से) आचारांग आदि ग्यारह अंग-ग्रन्थों का समावेश है। परन्तु अंग बाह्य के भेद-विभेद की कई परम्परायें दृष्टिगत होती हैं। नंदीसूत्र' में अंग बाह्य आगम के दो भेद किये गये हैं- आवश्यक तथा आवश्यक-व्यतिरिक्त। आवश्यक के सामायिक आदि छ: भेद हैं तथा आवश्यकव्यतिरिक्त को पुन: कालिक और उत्कालिक दो भागों में विभक्त किया गया है। कालिक के अन्तर्गत उत्तराध्ययन आदि ३३ ग्रन्थों को ग्रहण किया गया है और उत्कालिक में दशवैकालिक, औपपातिक तथा अनेक प्रकीर्णक समाविष्ट हैं। उक्त विभाजन अंग बाह्य आगम के वर्गीकरण की प्राचीन परम्परा के अनुसार है। वर्तमान में आगमों का विभाजन छ:भागों में किया जाता है- (१) अंग-११, (२) उपांग-१२, (३) छेद सूत्र-६, (४) मूलसूत्र-४, (५) प्रकीर्णक-१० एवं (६) चूलिका सूत्र-२। इसमें सबसे अधिक मतभेद प्रकीर्णकों की संख्या के विषय में है। सामान्यत: श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में १० प्रकीर्णक ही आगमों के अन्तर्गत माने जाते हैं, किन्तु इसकी अधिकतम संख्या वर्तमान में ३० तक मानी जाती है। मुनि पुण्यविजय जी ने पइण्णयसुत्ताई नामक ग्रन्थ में २२ प्रकीर्णकों को संग्रहीत किया है। * इस नाम पर विद्वानों में मतभेद है। विद्वानों ने इसका नाम तित्थोगाली
(मुनिपुण्यविजय जी) तित्थुग्गालिय (तिर्थोद्गार) (प्राकृत भाषा और साहित्य का
आलोचनात्मक इतिहास - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री) और तित्थुगालिय
(तीर्थोद्गालिक) (अर्धमागधी कोश) ने स्वीकार किया है। ** शोधछात्र - प्राच्यविद्या धर्मविज्ञान संकाय, का०हि०वि०वि०, वाराणसी।
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