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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ :
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पद्मदेवसूरि के शिष्य राजशेखरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ५ सलेख जिनप्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :
वि० सं० १३८६ माघ वदि २ बी० जै० ले० सं०, लेखांक ३१३ वि. सं० १३९३ पौष वदि २ प्रा० ले० सं०, लेखांक ६२ वि० सं० १३९३ फाल्गुन सुदि २ बी० जै० ले० सं०, लेखांक ३५८ वि० सं० १४०९ फाल्गुन वदि २ वहीं, लेखांक १४४२ वि० सं० १४१५ ज्येष्ट वदि १३ वहीं, लेखांक ४४५
मलधारिगच्छीय प्रतिमा लेखों की सूची में वि० सं० १२५९ के प्रतिमालेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक मलधारी देवानन्दसूरि का नाम आ चुका है। जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है मलधारी देवप्रभसूरि कृत पाण्डवचरित की प्रशस्ति में भी ग्रन्थकार के ज्येष्ठ गुरुभ्राता और ग्रन्थ की रचना के प्रेरक के रूप में देवानन्दसूरि का नाम मिलता है। पाण्डवचरित का रचनाकाल वि० सं० १२७०/ई० सन् १२१४ माना जाता है। अतः समसामयिकता के आधार पर उक्त प्रशस्ति में उल्लिखित देवानन्दसूरि और वि० सं० १२५९/ई० सन् १२०३ में पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक देवानन्दसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं।
महामात्य वस्तुपाल द्वारा निर्मित गिरनार स्थित आदिनाथ जिनालय के वि० सं० १२८८/ई० सन् १२३२ दो अभिलेखों के रचनाकार नरचन्द्रसूरि और यहीं स्थित इसी तिथि के एक अन्य अभिलेख के रचनाकार नरेन्द्रप्रभसूरि महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरु नरचन्द्रसूरि और उनके शिष्य नरेन्द्रप्रभसूरि से अभिन्न हैं। यही बात वि० सं० १२९८/ ई० सन् १२४२ के लेख में उल्लिखित माणिक्यचन्द्रसूरि के गुरु नरचन्द्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है।
इसी प्रकार वि० सं० १३५२/ईस्वी सन् १२९६ से वि० सं० १३८०/ईस्वी सन् १३३४ तक के प्रतिमालेखों में उल्लिखित पद्मतिलकसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि एवं वि० सं० १३६८/ई० सन् १३३० से वि० सं० १४१५/ई० सन् १३५९ तक के प्रतिमालेखों में उल्लिखित उनके शिष्य राजशेखरसूरि समसामयिकता के आधार पर मलधारिगच्छीय प्रसिद्ध आचार्य राजशेखरसूरिं और उनके गुरु श्रीतिलकसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। - उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर मलधारिगच्छीय मुनिजनों की गुरुपरम्परा की पूर्वोक्त तालिका को जो वृद्धिगत स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है (द्रष्टव्य - तालिका क्रमांक २):
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