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१२८ : श्रमण / अप्रैल-जून/ १९९६
का लाभ लिया और विद्यालयों तथा धर्मशालाओं के निर्माण में विपुल योगदान दिया। दिल्ली के रूपनगर का जैन मंदिर आपकी ही प्रेरणा से बना था। पालीताणा की पंजाबी धर्मशाला के शिलान्यास में आप भागीदार थे। सुन्दरनगर, लुधियाना में निर्मित जैन मंदिर तथा श्री बद्रीनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार, शाहदरा एवं फरीदाबाद के मंदिरों के निर्माण में आपने विशेष भूमिका निभाई। हस्तिनापुर के पावन श्री पारणा मंदिर का शिलान्यास तथा प्रतिष्ठा का सम्पूर्ण लाभ आपने लिया था। गुडगाँव के श्री शान्तिनाथ जैन मंदिर, माता पद्मावती मंदिर तथा सेवासदन के भवननिर्माण एवं प्रतिष्ठा में आपका योगदान सर्वोपरि रहा। दिल्ली में निर्मित भव्य एवं कलात्मक श्री विजयवल्लभ स्मारक का शिलान्यास, भगवान् वासुपूज्य जिनालय में मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा तथा नर्सरी स्कूल के निर्माण के लिए आप चिरस्मरणीय रहेंगे। श्री हस्तिनापुर में भगवान् श्री ऋषभदेव जी की निर्वाण स्थली अष्टापद का शास्त्रोक्त रीति से आयोजित मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन अभी डेढ़ मास पूर्व आपके ही कर-कमलों से हुआ था।
२२ मार्च को आयोजित उनकी विशाल श्रद्धाञ्जलि सभा में गुणानुवाद के लिए हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस अवसर पर पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ओर से प्रो० सागरमल जैन भी उपस्थित रहे। उपस्थित जनसमूह ने लालाजी को बीसवीं शताब्दी का सर्वश्रेष्ठ श्रावक कहा और उन्हें 'शासनरत्न' की उपाधि से मरणोपरान्त अलंकृत किया।
मद्रास में जैन विद्याश्रम का शुभारम्भ
'जैन विद्या अनुसन्धान प्रतिष्ठान' मद्रास के तत्त्वावधान में छात्रों के सर्वांगीण विकास एवं जैन संस्कारों से युक्त उच्चकोटि की शिक्षा प्रदान करने के लिए स्थापित जैन विद्याश्रम नाम बृहद् आवासीय विद्यालय का शुभारम्भ २७ जून, १९९६ से हो रहा है। पुरस्कार हेतु कृतियाँ आमन्त्रित
अतिशय क्षेत्र महावीर जी द्वारा संचालित जैन विद्या संस्थान एवं अपभ्रंश साहित्य अकादमी, दिगम्बर अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी की ओर से वर्ष १९९६ के लिए ग्यारह-ग्यारह हजार रुपये के महावीर पुरस्कार एवं स्वयम्भू पुरस्कार के लिए क्रमशः जैन धर्म-दर्शन, इतिहास, साहित्य, संस्कृति आदि से सम्बन्धित किसी भी विषय पर तथा अपभ्रंश साहित्य से सम्बन्धित हिन्दी या अंग्रेजी की रचनाओं की प्रकाशित अथवा अप्रकाशित ४-४ प्रतियाँ ३० सितम्बर १९९६ तक आमंत्रित हैं। नियमावली तथा प्रारूप दि० जैन नसियां भट्टारक जी, सवाई मानसिंह हाइवे जयपुर-४ से प्राप्त की जा सकती हैं। वर्ष १९९५ का महावीर पुरस्कार कैलाशनाथ द्विवेदी एवं डॉ० उदयप्रताप सिंह सेंगर को उनकी कृति नाटककार हस्तिमल्ल तथा स्वयंभू पुरस्कार डॉ० त्रिलोकीनाथ प्रेमी को उनकी रचना हिन्दी के आदिकालीन रास और रासक काव्यरूप पर महावीर जयन्ती के अवसर पर ४-४-९६ को प्रदान किया गया।
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