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________________ ६१ : अमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९५ को क्षमा कर देता है। वसुदेव और सोमश्री का पुनर्मिलन हो जाता है। वसुदेवहिंडी का महत्त्व इसलिये भी अधिक है कि यह महाकवि गुणाढ्य की पैशाची भाषा में रचित विलुप्त बृहत्कथा के मूल स्वरूप का दिग्दर्शन कराती है। पाश्चात्य विद्वान डा० एल० आल्सडोर्फ ने इसे बृहत्कथा का जैन रूपान्तर कहा है।३० बृहत्कथा अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। इसके नेपाली, जैन और कश्मीरी रूपान्तर मूलरचना के शताब्दियों के बाद प्रस्तुत हुए हैं। इन्हीं ग्रन्थों के आधार पर विद्वानों ने मूलग्रन्थ की रूपरेखा तैयार की है। प्रो० लोकोत ने विलुप्त बृहत्कथा की आयोजना का अनुमान बृहत्कथा श्लोकसंग्रह के आधार पर किया है। वत्सराज उदयन का पुत्र नरवाहनदत्त अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध मदनमंचुका से विवाह कर लेता है। कोई विद्याधर मदनमंचुका का अपहरण कर लेता है। अपनी प्रिया की खोज में नरवाहनदत्त विद्याधर और मनुष्यलोक में घूमते हुये अनेक पराक्रम दिखाते हुये मानवी और विद्याधर अनेक कन्याओं से विवाह करता है। अन्त में मदनमंचुका को भी प्राप्त कर लेता है। वह चक्रवर्ती बनता है मदनमंचुका उसकी प्रधान महिषी बनती है। यह कथा का एक स्वरूप था। इसमें अनेक अवान्दर कथाओं का संग्रह था।३१ बुद्धस्वामी रचित बृहत्कथा श्लोकसंग्रह, बृहत्कथा की नेपाल वाचना मानी जाती है। यह २४ सर्गों में विभाजित है। इसमें लगभग ४५३९ श्लोक हैं। इसमें नरवाहनदत्त के २४ विवाहों में दो का उल्लेख है। इसका केवल एक चौथाई भाग ही प्राप्त है। दसवीं शताब्दी के सोमदेव भट्ट द्वारा विरचित कथा-सरित-सागर और ग्यारहवीं शती के विद्वान क्षेमेन्द्र द्वारा रचित बृहत्कथामंजरी कश्मीरी वाचना मानी जाती है। बृहत्कथामंजरी में १४ लम्बक हैं। सोमदेवभट्ट और क्षेमेन्द्र ने अपनी कथाओं को इतना विस्तार दे दिया है कि वह मूल स्रोत से बहुत दूर हो गई हैं और कई मूल कथायें संक्षिप्त कर दी गई हैं, कई मूल अंश छोड़ दिये गए हैं और कितने ही नये प्रक्षेप जोड़ दिये गए हैं। इस तरह मूल ग्रन्थ का विभिन्न रूप बन गया है। . सभी कथाओं के विस्तृत विश्लेषण से विद्वानों ने कुछ ऐसे तथ्यों का उद्घाटन किया है जिससे अनुमान किया जाता है कि बृहत्कथा श्लोकसंग्रह और वसुदेवहिंडी के कथा-प्रसंगों में काफी साम्यता हैं। भाषा और शब्दावली भी मिलती-जुलती है। विद्वानों ने कश्मीरी रूपान्तर की अपेक्षा इन दोनों को मूल बृहत्कथा के सत्रिकट माना है। सम्भवतः इन दोनों के सामने मूल बृहत्कथा का एक अत्यन्त रसपूर्ण जीवन्त अतीत की सामग्रियों से भरा हुआ कथास्रोत था। यद्यपि कथाकार ने लोक-प्रचलित कथानक को ही गुम्फित किया है तथापि अपनी मौलिक प्रतिभा से कथा के उद्देश्य की पूर्ति के लिये कुछ आवश्यक परिवर्तन एवं परिवर्धन करके अपनी नैसर्गिक काव्यात्मक प्रतिभा का परिचय दिया है। इसमें उन्होंने सार्वजनिक उपदेशों को भी दक्षता से पल्लवित करके इस कृति को अमर बना दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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