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________________ ५९ : अमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९५ अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है, इसके नेपाली, जैन और कश्मीरी रूपान्तर मूल रचना के शताब्दियों के बाद प्रस्तुत हुये हैं। संघदासगणि ने वसुदेवहिंडी को एक धर्मकथा के रूप में प्रस्तुत किया है। यह कृष्ण के पिता वसुदेव के देशदेशान्तर सम्पूर्ण बृहद् भारत के भ्रमण पर लिखी गई है। इसमें जैन धर्म की प्रभावना करने वाले कितने ही प्रसंगों को यथास्थान सम्मिलित किया है। उन्होंने अपनी कल्पनाशक्ति से बृहत्कथा की कामकथा को लोककथा और धर्मकथा में परिवर्तित किया है। बृहत्कथा के कथानायक राजा उदयन के पुत्र नरवाहनदत्त के अद्भुत कौशल को अन्धकवृष्णि के महापुरुष वसुदेव पर आरोपित करके अपनी सृजनात्मक कला का परिचय दिया है। ग्रन्थ की प्रस्तावना में लेखक ने पंचनमस्कार करते हुये गुरु-परम्परागत 'वसुदेवचरित' संग्रह-गाथा की प्रस्तुति के उद्देश्य को स्पष्ट किया है तथा इसके छ: अधिकार किये हैं - १. कथोत्पत्ति, २. पीठिका, ३. मुख, ४. प्रतिमुख, ५. शरीर, ६. उपसंहार।२७ उपलब्ध ग्रंथ में कथोत्पत्ति के बाद धम्मिलहिण्डी है। उसके बाद पीठिका, मुख, प्रतिमुख और शरीर है उपसंहार नहीं है। कथोत्पत्ति, पीठिका और मुख में कथा का प्रस्ताव हुआ है। प्रतिमुख में वसुदेव ने अपनी आत्मकथा का आरम्भ किया है। शरीर के अन्तर्गत कथा का विकास किया है। १. कथोत्पत्ति - आचार्य ने इस ग्रन्थ को प्रथमानुयोग में वर्णित तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती और दशाह वंश की व्याख्या के प्रसंग में कहा है। इसमें महावीर के गणधर सुधर्मास्वामी द्वारा अपने शिष्य जम्बू स्वामी को यह चरित कहा गया है। उससे पहले जम्बू स्वामी का चरित्र कहते हुये इभ्यपुत्र का दृष्टान्त, प्रभवस्वामी की कथा, मधुबिन्दु का दृष्टान्त, ललिताङ्ग का दृष्टान्त, कुबेरदत्त और कुबेरदत्ता का कथानक, महेश्वरदत्त का आख्यान, प्रसन और वल्कलचीरी की कथा आदि कितने ही पौराणिक कथानकों का समावेश किया गया है। धम्मिलहिण्डी – वसुदेवहिंडी के कथोत्पत्ति प्रकरण के अनन्तर ३० पृष्ठों की धम्मिलहिण्डी नाम की एक महत्त्वपूर्ण रचना है जिसमें धम्मिल नामक सार्थवाहपुत्र की कथा है जो देशदेशान्तर में भ्रमण करके ३२ कन्याओं से विवाह करता है। यह अपने आपमें एक स्वतन्त्र रचना है। मूलकथा वसुदेवहिण्डी की तरह कई विवाहों की कथा पर आधारित है। इसमें शीलगति, धनश्री, विमलसैना, ग्रामीण गाड़ीवान, वसुदत्ताख्यान, रिपुदमन, नरपति आदि लोककथाओं का सृजन बड़े कलात्मक ढंग से किया गया है। २. पीठिका - में कृष्ण की अग्रमहिषियों का परिचय, पुत्र-प्राप्ति के लिये हरिणगमेशी देव की पूजा-अर्चना, गणिकाओं की उत्पत्ति, ३२ प्रकार की नाट्यविधि, प्रद्युम्न और शाम्ब कुमार की कथा का सम्बन्ध। प्रद्युम्न कुमार का जन्म और उसका अपहरण, प्रद्युम्न और शाम्ब के पूर्वजन्म की कथा, प्रद्युम्न के माता-पिता के साथ समागम तथा पाणिग्रहण का उल्लेख है। ३. मुख - इसमें शाम्ब और भानु की परस्पर क्रीड़ाओं और आपसी विद्वेष का उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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