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________________ विश्वनाथ पाठक चक्रे काव्यं वरमिह मया स्तम्भनेशप्रसादात सभिः शोध्यं परहित परैरस्तदोपैरसादात्।। 131 ।। इस उल्लेख से विदित होता है कि कवि ने विक्रम संवत् 1484 में गुजरात के स्तम्भन तीर्थ (खंभात) में इस ग्रन्थ की रचना की थी। अनेक विद्वान जलधि शब्द से सात की संख्या का ग्रहण कर काव्य-रचना का काल संवत् 1487 मानते हैं। किन्तु यह उचित नहीं है क्योंकि यदि जलधि का अर्थ सात है तो अम्भोधि का भी वही होना चाहिये। इस प्रकार रचनाकाल संवत् 1787 आता है जो कथमपि समीचीन नहीं है। परम्परानुसार जलधि अम्भोधि या समुद्रवाचक किसी भी शब्द का अर्थ चार ही होता है। अतः ग्रन्थ की रचना संवत् 1484 में हुई थी -- यही मानना संगत है। ___शीलदूत के निम्नलिखित वर्णन से ज्ञात होता है कि चारित्र सुन्दर गणि सत्तपोगच्छ के नेता श्री रत्नसिंह सूरि के शिष्य थे -- सोऽयं श्रीमानवनिविदितो रत्नसिंहाख्यसूरि --- जर्जीयाद् नित्यं नृपतिमहितः सत्तपोगच्छनेता।। 129 ।। शिष्योऽमष्याखिलबुधमुदे दक्षमुख्यस्य सूरे - श्चारित्रादिधरणिवलये सुन्दराख्यापसिद्धः । चक्रे काव्यं सुललितमहो शीलदूताभिधानं नन्धात् सार्धं जगतितदिदं स्थूलभद्रस्य कीर्त्या।। 130 ।। कवि ने शीलदूत के अतिरिक्त श्री कुमारपाल महाकाव्य, श्रीमहीपालवरित । और आचारोपदेशादि अनेक ग्रन्थों की रचना की है। शीलदूत की कथावस्तु __ पाटलीपुत्र का निवासी मन्त्रिपुत्र स्थूलभद्र अपने पिता के निधन का समाचार सुन कर विषयोपभोग से विरत हो जाता है और रामगिरि के आश्रमों में निवास करने लगता है। भद्रबाहु से जैनधर्म की दीक्षा ग्रहण कर वह उन्हीं की आज्ञा से चातुर्मास व्यतीत करने के लिये अपने घर जाता है। उस की प्रियतमा कोशा देखते ही प्रमुदित हो उठती है और पुनः गृहस्थ-जीवन व्यतीत करने का आग्रह करती है। वह कहती है, स्वामिन् यदि पुण्यार्जन ही आप का उद्देश्य है तो वह गृह में रहकर कूप, वापी, तडाग आदि के निर्माण से भी संभव है। अतः आप घर में रहकर दानादि के द्वारा पुष्कल पुण्योपार्जन करें। वृद्धावस्था में स्वेच्छा से तपश्चर्या के लिये वनवास ग्रहण करें। यही उचित है। जिनेन्द्र ने दया को सर्वश्रेष्ठ धर्म बताया है। आप निर्दयता पूर्वक अपने आश्रितों और बन्धुओं को त्याग रहे हैं, यह कौन सा धर्म है ? अपने परिजनों के परित्राण के लिये आप को मन्त्री का सम्मान्य पद स्वीकार कर लेना चाहिये। इससे ऐश्वर्य-भोग, प्रतिष्ठा और सुयश की प्राप्ति होगी। इस के पश्चात् वह अनेक पूर्वविहित विलास लीलाओं की उत्कट स्मृतियों को उबुद्ध करती हुई क्रीडाशैल पर बिहार करने के लिये PERHET aldt i For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jarut
SR No.525015
Book TitleSramana 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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