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________________ शालदूतम् है तथापि उन में भी दूत कल्पना और सन्देश-प्रेषण अन्य काव्यों के समान ही है। दूत काव्यों का प्रिय रस विप्रलम्भ श्रृंगार है। परन्तु अनेक जैन और जैनेतर कवियों की कृतियों में शान्तरस और भक्ति का प्राधान्य है। जम्बू कवि का चन्द्रदूत, धोयी का पवनदृत, रूप गोस्वामी का हंसदूत, लक्ष्मीदास का शुक सन्देश, वासुदेव कवि का भुंग-सन्देश, उदण्डकवि का कोकिल सन्देश, उदय कवि का मयूर-सन्देश, विष्णुदास का मनोदूत, विष्णुवात का कोक सन्देश कृष्णसार्वभौम का पदांकदूत, भोलानाथ का पान्थ दूत, रूपनारायण त्रिपाठी का वातिदूत, गौर गोपाल का काकदत, माधव कवीन्द्र का उद्भवदत, हरिदास का कोकिलदत, 'वेल्लंकोड रामराय का गरुड़सन्देश, लम्बोदर वैद्य का गोपीदूत, वागीश झा का चकोरदूत, अज्ञात कर्तृक चातक सन्देश, वेंकट कवि का चकोर सन्देश, श्रुतिदेव शास्त्री का झंझावात, त्रिलोचन कवि का तुलसीदूत, सिद्धनाथ विद्यावागीश का पद्मदूत, गोपेन्द्र नाथ गोस्वामी का पादपदूत, प्रो. वनेश्वर पाठक का प्लवंगदूत, सुब्रह्मण्यसूरि का बुद्धिसन्देश, कालीचरण का भक्तिदूत, प्रो. रामाशीष पाण्डेय का मयूखदूत, रंगाचार्य का मयूरसन्देश, वीर राघवाचार्य का मानससन्देश, प्रो. दिनेश चन्द्र का मित्रदूत, पं. राम गोपाल शस्त्री का मुद्गगरदूत, महामहोपाध्याय अजितनाथ का वकदूत, वीरेश्वर का वाङ्मण्डनगुणदूत, अज्ञातकर्तृक विदूत, नारायण कवि का श्येनदूत, वीरवल्लि विजयराघवाचार्य का सुरभिसन्देश, वरदाचार्य का हरिण सन्देश, अज्ञात कर्तक हारीतदूत, भट्टहरिहर का हृदयदूत आदि स्वतन्त्र दूत काव्य हैं, जिन के नामों से ही दूतों के कल्पना-वैविध्य का परिचय मिलता है। पादपूात्मक दूतकाव्य पादपूर्ति या समस्यापूर्ति काव्य रचना की एक अति प्राचीन विधा है। राजसभाओं और विद्गगोष्ठियों में इस का अत्यधिक प्रचार था। तत्क्षण समस्यापूर्ति कर देना प्रखर वैदूष्य का निकष माना जाता था। अनेक विदुषी कन्यायें अपने वर का चयन पादपूर्ति के माध्यम से करती थीं और स्वयं भी उस कला में पूर्ण पदु होती थीं। पंचम शती की प्राकृत कथा वसुदेवहिण्डी में विमला और सुप्रभा नामक दो कन्याओं के द्वारा 'ण दुल्लहं दुल्लहं तेसिं।' इस समस्या की पूर्तियां दी गई हैं-- आठवीं शती की रचना कुवलयमाला में राजकुमारी के द्वारा 'पंच वि पउमे विमाणम्मि।' इस समस्या की पूर्ति करने वाले राजकुमार कुवलय चन्द्र से विवाह करने का उल्लेख है। भोज प्रबन्ध में अनेक चमत्कारपूर्ण समस्यापूर्तियां सुरक्षित हैं। एक अनुश्रुति के अनुसार महाकवि कालिदास ने भी 'कमले कमलोत्पत्तिः श्रूयते न च दृश्यते।' इस श्लोकार्ध की पूर्ति 'बाले ते मुखाम्भोजे कथमिन्दीवरव्यम्' कहकर की थी। अनेक कवियों ने मेघदूत के श्लोकों या श्लोक-पादों को समस्या के स्प में रख कर भी दूत काव्यों का प्रणयन किया है। आठवीं शती में विद्यमान जैनाचार्य जिनसेन ने सर्वप्रथम मेघदूत की पादपूर्ति के रूप में पार्वाभ्युदय नामक प्रबन्ध काव्य लिखा। इस के पश्चात् मेघदूत की पादपूर्ति में ऐसे दूत काव्यों का प्रणयन प्रारम्भ हो गया जिन में प्रत्येक पद्य के चतुर्थपाद को समस्या मान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525015
Book TitleSramana 1993 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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