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२. उपकेश गच्छपट्टावली - १ रचनाकार- अज्ञात, वि० सं० की १५वीं शती का अन्त
श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१
३. उपकेशगच्छपट्टावली २ - रचनाकार-अज्ञात, वि० सम्वत् की २०वीं शती
रचनाकाल
कक्कसूरि के सं० १३०३ / ई० १३३६ में लिखे गये उपकेशगच्छ प्रबन्ध एवं नाभिनन्दनजिनोद्धारप्रबन्ध के आधार पर श्री मोहनलालदलीचंद देसाई ने उपकेशगच्छ की पट्टावली का पुनर्गठन किया है । इस पट्टावली में कक्कसूरि और उनके गुरु सिद्धसूरि के सम्बन्ध में दिये गये समसामयिक विवरणों की ऐतिहासिकता निर्विवाद है । इसी प्रकार इस पट्टावली के कुछ अन्य विवरणों जैसे देवगुप्तसूरि द्वारा नवपदप्रकरणवृत्ति, उनकी पाश्चात्कालीन परम्परा में हुए यशोदेवउपाध्याय द्वारा नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति के लेखन की बात उक्तरचनाओं की प्रशस्तियों से समर्थित होती है । चौलुक्यनरेश कुमारपाल के समय कक्कसूरि द्वारा पाटण में क्रियाहीन साधुओं को गच्छ से बाहर करने की बात, जो इस पट्टावली में उद्धृत की गयी है, सत्य प्रतीत होती है । यद्यपि इस घटना का किसी अन्य समसामयिक साक्ष्य से समर्थन नहीं होता । इस पट्टावली में उल्लिखित अन्य बातें-यथापार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा से उपकेशमच्छ की उत्पत्ति, वीरनिर्वाण सम्वत् ८४ में आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर और कोरंटपुर में एक साथ जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा आदि का किसी भी पुराने ऐतिहासिक साक्ष्य से समर्थन नहीं होता, अतः ये बातें ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वहीन हैं ।
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रचनाकाल
५. मुनि जिनविजय संपा० विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह (बम्बई, १९५१ई०) पृष्ठ ७-९
२. देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ २२७७-२२८५;
मुनि दर्शनविजय - - संपा० पट्टावलीसमुच्चय भाग १
( वीरमगाम १९३३ ई०) पृष्ठ १७७-१९४
मुनि कल्याणविजय संपा० पट्टावलीप रागसंग्रह ( जालौर सं० २०२३ ) पृष्ठ २३४-२३८
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