________________
श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१
पुष्पदन्त शैवमतावलम्बी थे और इन्होंने भैरव नामक किसी शैव राजा की प्रशंसा में काव्य का प्रणयन भी किया था। बाद में पुष्पदन्त किसी जैन मुनि के उपदेश से जैन हो गये थे और मान्यखेट में आकर मन्त्री भरत के अनुरोध से जिन भक्ति से प्रेरित होकर काव्य सृजन में प्रवृत्त हुए । महाकवि पुष्पदन्त कृत केवल एक पुराण उपलब्ध होता है और वह है महापुराण ।
४८
यशस्वी कवि पुष्पदन्त द्वारा रचित महापुराण अपभ्रंश भाषा की ऐसी विशिष्ट कृति है जिसमें जैन-धर्म, जैन दर्शन, संस्कृति, समाज एवं कला का सजीव चित्रण तो हुआ ही है, साथ ही हिन्दू धर्म में बहुमान्य राम एवं कृष्ण की कथाओं का भी विशद चित्रण हुआ है । यह महापुराण दो खण्डों में विभक्त है - - आदि पुराण और उत्तर पुराण | ये दोनों खण्ड अलग-अलग ग्रन्थ रूप में मिलते हैं । इन दोनों खण्डों में त्रेसठ शलाकापुरुषों के चरित वर्णित हैं । प्रथम खण्ड में आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव का तथा दूसरे खण्ड में शेष २३ तीर्थङ्करों का और उनके समययुगीन अन्य महापुरुषों नारायण, प्रतिनारायण बलभद्र आदि की जीवन गाथा वर्णित हैं । आदिपुराण में ८० और उत्तर पुराण में ४२ सन्धियाँ (सर्ग ) हैं । इनका श्लोक परिमाण २० हजार है । जिनरत्नकोष में पुष्पदन्त रचित अपभ्रंश महापुराण १०२ सन्धियों में विभक्त बतलाया गया है। पं० नाथूराम प्रेमी के अनुसार विभिन्न प्रमाणों से ज्ञात होता है कि शक सं० ८८१ में पुष्प - दन्त मेलपाटी में भरत महामय से मिले और उनके अतिथि हुए । इसी साल इन्होंने महापुराण शुरू करके उसे शक सं० ८८७ में समाप्त किया ।
महाकवि पुष्पदन्त कृत उत्तर पुराण में पद्मपुराण (रामायण) और हरिवंशपुराण (महाभारत) भी सम्मिलित हैं ये पृथक-पृथक ग्रन्थ रूप १. अपभ्रंश भाषा और साहित्य (डा० देवेन्द्र कुमार जैन ) पृ० ६८ २. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० १०५ ३. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३१२-३१३
४. जिनरत्नकोश, पृ० ३०२
५. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३२८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org