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________________ श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ जाने पर ( वि०सं० १५४५) यहाँ भी स्थापित हो गई थी। आप शतकत्रयवृत्ति के रचयिता सुप्रसिद्ध विद्वान् धनसार उपाध्याय के प्रशिष्य और उपाध्याय रत्नसमुद्र के शिष्य थे। कवि सहजसुन्दर का ग्रन्थ रचना काल सं० १५७० से सं० १५९५ तक ज्ञात होता है। प्रस्तुत निबन्ध में जैनगुर्जरकविओ भाग-१ और भाग-३ के आधार पर कवि के रचनाओं की सूची आगे दी गई है। पच्चीस वर्षों के रचनाकाल में कवि ने और भी रचनाएँ की होंगी, जिनका प्रचार नहीं हो पाया। उपकेशगच्छ के ज्ञान भण्डार अस्त-व्यस्त हो चुके हैं, अतः सहजसुन्दर की अन्य रचनाओं की खोज करना कठिन है। उपकेशगच्छ की परम्परा भगवान् पार्श्वनाथ से जोड़ी जाती है। मध्यकाल में इस गच्छ का बड़ा प्रभाव रहा है। मारवाड़ के ओसीया नामक स्थान का प्राचीन नाम उपकेशपुर था । ओसवाल जाति ओसीया से ही प्रसिद्धि में आयी है। उपकेशगच्छ में बहुत से संस्कृत और राजस्थानी भाषा के कवि हुए हैं । मुनि ज्ञानसुन्दर जी ने 'पार्श्वनाथ परम्परा का इतिहास' नामक बृहद् ग्रंथ दो भागों में प्रकाशित किया है । 'शत्रुञ्जय तीर्थोद्धार प्रबन्धादि' इस गच्छ की कुछ रचनाएँ ही प्रकाशित हुई हैं और अधिकांशतः अप्रकाशित ही हैं। कवि सहजसुन्दर को रचनाओं को सूची १-एलाची पुत्र सज्झाय० गा० ३१, सं० १५७० जेठ वदि ९ २ - गुणरत्नाकर छन्द गा० १६०, सं० १५७२ ३-ऋषिदत्ता रास गा० ३६८, सं० १५७२ ४-रत्नसार कुमार चौपाई पद्य ९९, सं० १५८२ ५ --आत्मराज रास गा० ८०, सं० १५८२ (८) ६-परदेशी राजानोरास गा० २१९ ७----शुकराज सहेली कथारास ८-जम्ब अन्तरंगरास गा०६३ ९-यौवन जरा संवाद गा० २५ १०-तेतलीपुत्रमन्त्री रास गा०, सं० १५९५, आ० सु० ८, मंगल शांतज । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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