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________________ २४ श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ ओर 'नागोद' नाम का कस्बा आज भी है। आजादी के पूर्व यह एक स्वतंत्र राज्य था और ऊँचेहरा इसी राज्य के अधीन आता था। नागोद के आस-पास भी जो प्राचीन सामग्री मिली है उससे यही सिद्ध होता है कि यह भी एक प्राचीन नगर था। प्रो० के० डी० बाजपेयी ने नागोद से २४ कि० मी० दूर नचना के पुरातात्विक महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है।' नागोद की अवस्थिति पन्ना (म० प्र०), नचना और ऊँचेहरा के मध्य है। इन क्षेत्रों में गुप्तकाल के पूर्व शुंगकाल से लेकर ९वीं-१०वीं शती तक की पुरातात्विक सामग्री मिलती है अतः इसकी प्राचीनता में सन्देह नहीं किया जा सकता है। नागोद न्यग्रोध का ही प्राकृत रूप है अतः सम्भावना यही है कि उमास्वाति का जन्म स्थल यही नागोद था और जिस उच्चनागरी शाखा में वे दीक्षित हुए थे, वह भी उसी के समीप स्थित ऊँचेहरा (उच्चकल्प नगर) से उत्पन्न हुई थी। तत्वार्थ भाष्य की प्रशस्ति में उमास्वाति की माता को वात्सी कहा गया है। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि वर्तमान नागोद और ऊँचेहरा दोनों ही प्राचीन वत्स देश के अधीन ही थे। भरहुत और इस क्षेत्र के आस-पास जो कला का विकास देखा जाता है, वह कौशाम्बी अर्थात् वत्सदेश के राजाओं के द्वारा किया गया था। ऊँचेहरा वत्सदेश के दक्षिण का एक प्रसिद्ध नगर था। भरहुत के स्तुप के निर्माण में भी वात्सी गोत्र के लोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान था, ऐसा वहाँ से प्राप्त अभिलेखों से प्रमाणित होता है। भरहुत के स्तूप के पूर्वी तोरणद्वार पर वाच्छीपुत्त धनभूति का उल्लेख है।' अतः हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उमास्वाति का जन्मस्थल नागोद (न्यग्रोध) और उनकी उच्च गर शाखा का उत्पत्ति स्थल ऊ चेहरा ही है। १. संस्कृति संन्धान (सम्पा० डा० झिनकू यादव), प्रका० राष्ट्रीय मानव संस्कृति शोध संस्थान, वाराणसी वाल्यू III १९९० में मुद्रित 'बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक धरोहरः नचना नामक प्रो० कृष्णदत्त बाजपेयी का लेख, पृ० ३१ २. भरहुत, भूमिका पृ० सं० १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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