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________________ उच्च गर शाखा के उत्पत्ति स्थल एवं उमास्वाति के जन्म स्थल १९ पाया जाता है। वे आगे भी लिखते हैं कि कनिंघम का विश्वास है कि यह ऊँचानगर से सम्बन्धित होगी ।" चूंकि कनिंघम ने आकियोलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया के १४वें खंड में बुलन्दशहर का समीकरण ऊँचानगर से किया था। इसी आधार पर मुनि कल्याणविजय जी ने यह लिख दिया है "ऊँचा नगरी शाखा प्राचीन ऊँचा नगरी से प्रसिद्ध हुई थी। ऊँचा नगरी को आजकल बुलन्दशहर कहते हैं।" इस सम्बन्ध में पं० सुखलाल जी का कथन है-'उच्चै गर' शाखा का प्राकृत नाम 'उच्चानागर' मिलता है। यह शाखा किसी ग्राम या शहर के नाम पर प्रसिद्ध हुई होगी, यह तो स्पष्ट दीखता है परन्तु यह ग्राम कौन-सा था, यह निश्चित करना कठिन है। भारत के अनेक भागों में 'नगर' नाम के या अन्त में 'नगर' शब्दवाले अनेक शहर तथा ग्राम हैं। 'बड़नगर' गुजरात का पुराना तथा प्रसिद्ध नगर है। बड़ का अर्थ मोटा (विशाल ) और मोटा का अर्थ कदाचित् ऊँचा भी होता है। लेकिन गुजरात में बड़नगर नाम भी पूर्वदेश के उस अथवा उस जैसे नाम के शहर से लिया गया होगा, ऐसी भी विद्वानों की कल्पना है । इससे उच्चनागर शाखा का बड़नगर के साथ ही सम्बन्ध है, यह जोर देकर नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त जब उच्चनागर शाखा उत्पन्न हुई, उस काल में बड़नगर था या नहीं और था तो उसके साथ जैनों का कितना सम्बन्ध था, यह भी विचारणीय है । उच्चनागर शाखा के उद्भव के समय जैनाचार्यों का मुख्य विहार गंगा-यमुना की तरफ होने के प्रमाण मिलते हैं । अतः बड़नगर के साथ उच्चनागर शाखा के सम्बन्ध की कल्पना सबल नहीं रहती। इस विषय में कनिंघम का कहना है “यह भौगोलिक नाम उत्तरपश्चिम प्रान्त के आधुनिक बुलन्दशहर के अन्तर्गत 'उच्चनगर' नाम के किले के साथ मेल खाता है।" १. तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (द्वितीय विभाग) प्रस्तावना, हीरालाल कापड़िया, पृ० ६ २. पट्टावली पराग संग्रह (मुनि कल्याण विजय), पृ० ३७ ३. तत्त्वार्थसूत्र, (विवेचक पं० सुखलाल संघवी), प्रकाशक पार्श्वनाथ विद्या श्रम शोध संस्थान, वाराणसी, पृ० सं० ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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