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इस कृति से बौद्ध धर्म-दर्शन एवं अन्य सामाजिक मान्यताओं का सहज बोध होता है ?
कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ – सम्पादिका: साध्वी दिव्यप्रभा; प्रकाशक : कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ समिति, श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय शास्त्री सर्कल, उदयपुर; आकार : डबल क्राउन; पृष्ठ संख्या २८+५८४+४०; मूल्य : रु० १५१००; संस्करण : प्रथम १९९० ।
साध्वी श्री कुसुमजी ने अपने साधनामय जीवन से जैन समाज की साध्वियों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है। उन्हीं की आज्ञानुवर्तनी साध्वी श्री दिव्य प्रभाजी के कुशल नेतृत्व में 'कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है । इस ग्रन्थ की विषय-सामग्री को सात खण्डों में विभाजित किया गया है जिसमें प्रथम खण्ड श्रद्धार्चना, द्वितीय जीवन-दर्शन, तृतीय धर्म तथा दर्शन, चतुर्थ जैन संस्कृति के विविध आयाम पञ्चम जैन साहित्य और इतिहास, षष्ठम विविध राष्ट्रीय सन्दर्भों में जैन परम्परा की परिलब्धियाँ और सप्तम विचार मन्थन से सम्बद्ध हैं । अन्त में परिशिष्ट भी दिया हुआ है ।
ग्रन्थ सामग्री के रूप में जैन विधा के विविध अधिकारी विद्वानों एवं साधु-साध्वियों के शोधपूर्ण लेख संकलित किए गये हैं जिनमें अनेक लेख शोध की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं । कुछ प्रूफ संशोधन सम्बन्धी त्रुटियों के अतिरिक्त ग्रन्थ- मुद्रण निर्दोष एवं कलात्मक है । ग्रन्थ पठनीय एवं संग्रहणीय है ।
चंद वेज्जयं (चन्द्रवेध्यक) अनुवादक श्री सुरेश सिसोदिया; सम्पादक : प्रो० सागरमल जैन, प्रकाशक; आगम अहिंसा समता एव प्राकृत संस्थान, पद्मिनी मार्ग, उदयपुर (राज० ); प्रथम संस्करण : १९९१ पृष्ठ ३९ +६८; मूल्यः ३५ रुपये ।
प्रस्तुत कृति में मूल आधारित हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है । चन्द्रवेध्यक श्वेताम्बर आगम साहित्य के प्राचीन ग्रन्थों में एक महत्त्वपूर्ण प्रकीर्णक ग्रन्थ है । 'चन्द्रवेध्यक' नाम से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि इस ग्रन्थ में आचार के जो नियम आदि बताए गए हैं उनका पालन कर पाना चन्द्रक - वेध ( राधा वेध ) के समान ही मुश्किल है । इस ग्रन्थ में सात द्वारों से सात गुणों का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार हैं।
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