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________________ सिद्धसूरि [ वि० सं १६५९-१६८९ ] वि० सं० १६८९ में दिवंगत कक्कसूरि [वि० सं० १६९१---? ] देवगुप्तसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध ] सिद्धसूरि [वि० सं० १७८३ में दिवंगत ] कक्कसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध ] देवगुप्तसूरि [ वि० सं० १८४६ में दिवंगत ] सिद्धसूरि [वि० सं० १८९० में दिवंगत ] कक्कसूरि [प्रतिमालेख अनुपलब्ध ] देवगुप्तसूरि [वि० सं० १९०५-१९१२ ] प्रतिमालेख उपकेशगच्छ से सम्बद्ध १८वीं-१९वीं शती के कुछ प्रतिमाओं पर इस गच्छ के यतिजनों के नाम भी मिलते हैं, परन्तु इनके आधार पर इन यतिजनों की गुरु-परम्परा की कोई तालिका नहीं बन पाती है।। उपकेशगच्छ से सम्बद्ध प्रतिमालेखों की उक्त तालिका से स्पष्ट है कि विक्रम की १६वीं शती तक इस गच्छ के मुनिजनों का विशेष प्रभाव रहा, किन्तु १७वीं शताब्दी से इस गच्छ के प्रभाव में कमी आने लगी, फिर भी २०वीं शती तक इस गच्छ का निर्विवाद रूप से अस्तित्व बना रहा। १. नाहटा, अगरचन्द भंवरलाल-बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखाङ्क २१३१-२१५१ [इस निबन्ध के लेखन में मुनि ज्ञानसुन्दर की प्रसिद्ध कृति भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास भाग १-२ तथा श्री मांगीलाल भूतोडिया द्वारा लिखित इतिहास की अमरबेल : ओसवाल से भी विदोष सहायता प्राप्त हुई है, अतः लेखक उनके प्रति विशेष आभार प्रकट करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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