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नालिका ५
कक्कसूरि
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जिनचन्द्रगणि/कुलचन्द्रगणि
अपरनाम देवगुप्तसूरि [वि०सं० १०७३/ई० सन् १०१७ में नवपदप्रकरणवृत्ति के रचनाकार]
। [तत्वार्याधिगमसूत्र की ३१ उपोद्घातकारिकाओं के टीकाकार ?] कक्कसूरि [जिनचैत्यवंदनविधि एवं पंचप्रमाण के रचयिता]
। [वि०सं० १०७८ प्रतिमालेख] सिद्धसूरि देवगुप्तसूरि
सिद्धसूरि
यशोदेवउपाध्याय पूर्वनाम धनदेव [वि०सं० ११९२/ई० सन् ११३६ में क्षेत्रसमासवृत्ति वि०सं० ११६५/ई० सन् ११०९ में नवपदप्रकरणबृहवृत्ति के रचयिता]
एवं [वि०सं० १२०३ प्रतिमालेख]
वि०सं० ११७८/ई० सन् ११२१ में चन्द्रप्रभचरित के
रचयिता] कक्कसूरि [चौलुक्यनरेश कुमारपाल वि०सं० ११९९-१२३०] के समकालीन
[वि०सं० ११७२-१२१२ प्रतिमालेख
श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१
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