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________________ ‘तत्त्वार्थसूत्र' को न्याय-ग्रन्थ मान लिया जाता है तो इसकी सैकड़ों टीकाएँ भी न्याय -ग्रन्थ कहला सकती हैं, इसी प्रकार दर्शन के जिन तार्किक ग्रन्थों में न्याय का प्रसंगानुकूल थोड़ा-बहुत वर्णन हुआ है उन्हें भी न्याय-ग्रन्थों की इस सूची में सम्मिलित किया जा सकता है; परन्तु यदि अभी उन सबको छोड़ दिया जाए और मात्र न्याय, ( प्रमाण - नय - विवेचन) के स्वतंत्र ग्रन्थों की की तो भी आज वह कुल 150 से ऊपर पहुँच जाती है - यह आश्चर्य का विषय है। बहुत से लोग जैन - न्याय-ग्रन्थों के नाम पर परीक्षामुखसूत्र न्यायदीपिका, प्रमाणमीमांसा आदि चार-छह ग्रन्थों को ही जानते हैं। बस ! इनके अतिरिक्त जो न्याय -ग्रन्थों का विशाल भण्डार है, इसका उन्हें ज्ञान ही नहीं है । अतएव यहाँ जैन-न्याय-ग्रन्थों की यह सूची प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जा रहा है। आशा है, इससे बहुत लोगों का भ्रम दूर होगा और शोधकर्ताओं को बहुत लाभ भी होगा। क्र. ग्रन्थ नाम 1. तत्त्वार्थसूत्र 2. आप्तमीमांसा हमारी भावना यहाँ यह भी है कि देशभर में व्याप्त जैनदर्शन एवं न्याय के विद्यालयों के छात्र व अध्यापक भी यथायोग्य इन ग्रन्थों के अध्ययन-अध्यापन में भी प्रवृत्त हों। यह सूची अभी अपूर्ण है, विद्वज्जनों से अनुरोध है कि वे इसे पूर्ण करने में सहयोग करें। क. प्राचीन आचार्यों के मूल ग्रन्थ 3. युक्त्यनुशासन 4. जीवसिद्धि 5. स्वयंभूस्तोत्र 6. सन्मतिसूत्र जैन न्याय ग्रन्थों का सूचीकरण 84 Jain Education International ग्रन्थकार उमास्वाति समन्तभद्र समन्तभद्र समन्तभद्र समन्तभद्र पूज्यपाद समय डॉ. वीरसागर जैन पहली सदी दूसरी सदी दूसरी सदी दूसरी सदी दूसरी सदी तीसरी सदी प्रकाशन या उपलब्धि- - स्थान शताधिक संस्थाओं से प्रकाशित वीरसेवामन्दिर, नई दिल्ली वीरसेवामन्दिर, नई दिल्ली अनुपलब्ध अनेक संस्थाओं से प्रकाशित भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 141 www.jainelibrary.org
SR No.524637
Book TitleTulsi Prajna 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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