________________
पिण्डनियुक्ति संपादन-कौशल का अद्भुत प्रकाशन
आचार्य तुलसी ने आगम-संपादन के महान् यज्ञ को प्रारंभ करके तेरापंथ धर्मसंघ में नए इतिहास का सृजन किया। आचार्य महाप्रज्ञ के अद्भुत संपादन-कौशल ने इस कार्य की गरिमा को शतगुणित वृद्धिंगत किया है। पूज्यवरों ने अनेक प्रबुद्ध एवं बहुश्रुत साधुओं के साथ साध्वी एवं समणी समाज को भी आगम कार्य में नियुक्त किया, यह इतिहास का दुर्लभ दस्तावेज है। इससे न केवल महिला समाज का कर्तृत्व मुखर हुआ बल्कि संघ की प्रभावना में भी अभिवृद्धि हुई है। आगमों के व्याख्या-साहित्य में नियुक्ति-साहित्य को प्रथम स्थान प्राप्त है, क्योंकि आगमों में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों को निक्षेप पद्धति से यहां व्याख्यायित किया गया है। निश्चय रूप से सम्यक् अर्थ का निर्णय करना तथा सूत्र में ही परस्पर सम्बद्ध अर्थ को प्रकट करना नियुक्ति का उद्देश्य है। नियुक्ति-साहित्य में पिण्डनियुक्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मुनि की भिक्षाचर्या और आहार-विधि पर लिखा गया यह मौलिक और स्वतंत्र ग्रन्थ है, इसीलिए मुनि-आचार की दृष्टि से इस ग्रन्थ को जनभोग्य बनाने का श्रम साध्य कार्य आगम मर्मज्ञा विदुषी समणी डॉ. कुसुमप्रज्ञा ने अपने कुशल संपादन से सम्पन्न किया है। आगम मनीषी संत मुनि दुलहराजजी ने पिण्डनियुक्ति और पिण्डनियुक्ति भाष्य का अनुवाद करके संपादन के कार्य को प्रभावी बना दिया है। ग्रन्थ के प्रारंभ में संपादिका ने 'पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण' नामक वृहद् भूमिका प्रस्तुत करके ग्रन्थ के रहस्य को सहज बोधगम्य बना दिया है। इस पर्यवेक्षण के अन्तर्गत जहां एक तरफ नियुक्ति-साहित्य का सम्यक् विवेचन हुआ है, वहीं दूसरी तरफ पिण्डनियुक्ति, उसका भाष्य मलयगिरीया टीका के साथ पिण्डनियुक्ति की विषयवस्तु की विस्तृत विवेचना हुई है। मुनि की भिक्षाचर्या और भिक्षाचर्या के विविध दोष यहां प्रस्तुत हुए हैं। इन दोषों का
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 ।
91
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org