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________________ के बस्ता क्रमांक 13 में यह कृति उपलब्ध है। यह गुणभद्र उत्तरपुराण के कर्ता गुणभद्र भी हो सकते हैं। 15. गणित विलास - चन्द्रम नामक पूर्णतः अज्ञात गणितज्ञ की गणित विलास शीर्षक कृति की तीन प्रतियां क्रमशः जैन मठ, मूड.बद्री (एक प्रति) एवं जैन भवन, मूड.बद्री (दो प्रति) में उपलब्ध है। _____16. गणित संग्रह - राजादित्य (12वीं श. ई.) नामक विशिष्ट किन्तु उपेक्षित भारतीय गणितज्ञ की गणित संग्रह नामक कृति का उल्लेख जैन मठ, मूड.बद्री के सूचीपत्र में ग्रन्थ क्रमांक 590 पर मिलता है। दृष्टव्य है कि राजादित्य की बहुचर्चित छह कृतियों में इसका कोई स्थान नहीं है। 17. गणित विलास - राजादित्य की गणित विलास शीर्षक कृति की तीन प्रतियां क्रमशः वैकणतिकारि बसादि, मूङबिद्री (एक प्रति) एवं जैन मठ, कारकल (दो प्रतियां) में सुरक्षित है। इस कृति का भी छह कृतियों में कोई उल्लेख नहीं है। कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड में राजादित्य की व्यवहार-गणित, व्यवहार-रत्न, क्षेत्र गणित, जैन गणित सूत्रोदाहरण, चित्रहसुगे, लीलावती शीर्षक छह कृतियाँ सुरक्षित है तथा इनमें प्रथम पुस्तक कन्नड़ में प्रकाशित हो चुकी है। 18. गणित कोष्ठक (पहाडा)- अज्ञात लेखक की यह कृति जैन मठ, कारकल के ग्रथं क्रमांक 54 पर सुरक्षित है। 19. पुद्गल भंग एवं वृत्ति - भंडारकर प्राच्य विद्या संस्थान पूना के भंडार से पांडुलिपि क्रमांक 215 पर सुरक्षित नयविजय गणि की इस कृति में भंगों का विवेचन है। लोकानुयोग - आचार्य जिनसेन की यह प्रति ऐलक पन्नालाल दिग. जैन सरस्वती भंडार, उज्जैन में पांडुलिपि क्रमांक 543 पर संग्रहीत है। कृति के अवलोकन से यह स्पष्ट हुआ है कि यह हरिवंशपुराण के लोक विषयक विवेचनों को अलग कर बनाई गई है। संभवतः शिष्यों को लोक के स्वरूप का बोध कराने के लिए आचार्य जिनसेन ने अपने हरिवंशपुराण से एतद् विषयक अंश को अलग कर लोकानुयोग नाम दे दिया है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन द्वारा विगत 4 वर्षों में किये गये देशव्यापी सर्वेक्षण में अनेक नई कृतियों के प्रकाश में आने की संभावना है। भारत सरकार के सम्मुख कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ को गणितीय पांडुलिपियों का विशिष्टीकृत केन्द्र बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है। आशा है कि इसके स्वीकृत होते ही यह एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में उभरेगा तथा गणितज्ञों को मौलिक शोध की प्रचुर सामग्री उपलब्ध होगी। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-सितम्बर, 2008 - - 67 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524636
Book TitleTulsi Prajna 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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