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पदार्थ का सीमाकरण करें
भगवान महावीर एक ऐसे महापुरुष हैं जो अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त की व्याख्या में पूरे विश्व में अद्वितीय है। उन्होंने देखा कि परिग्रह पर विचार किए बिना हिंसा पर विचार नहीं किया जा सकता। अहिंसा पर विचार करने के लिए अपरिग्रह पर विचार करना जरूरी है। हम लोग कार्य को बदलना चाहते हैं, कारण पर ध्यान कम देते हैं। इस प्रयत्न में हमें सफलता नहीं मिलती। हिंसा एक कार्य है, उसका कारण है परिग्रह |
वर्तमान युग में हिंसा बढ़ रही है। उसका कारण पदार्थ के प्रति ममत्व की बुद्धि है । परिग्रह का मौलिक स्वरूप ममत्व है। महावीर ने कहाममत्व की बुद्धि को छोड़े बिना ममत्व को नहीं छोड़ा जा सकता और ममत्व को छोड़े बिना हिंसा को कम नहीं किया जा सकता।
वर्तमान युग पदार्थवादी युग है। आज का चिन्तन प्रवाह है- पदार्थों
अधिक से अधिक बढ़ाओ और महावीर की वाणी है- 'पदार्थ का सीमाकरण करो'। भगवान महावीर ने पदार्थ, पदार्थ के प्रति होने वाला ममत्व अथवा मूर्च्छा को अनेकान्त दृष्टि से देखा । कोई भी जीवनधारी पदार्थ को छोड़ नहीं सकता । किन्तु कोई भी समाज परिग्रह का सीमातीत उपयोग करने वाला हिंसा को कम नहीं कर सकता।
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भगवान महावीर को मनाने का दूसरा पक्ष यह है कि उनकी स्तवना स्मृति की जाती है, किन्तु अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त पर चिन्तन कम किया जाता है, इन सिद्धान्तों के द्वारा वर्तमान की समस्या को सुलझाने का प्रयत्न कम किया जाता है। हम दोनों पक्षों में संतुलन स्थापित करने का प्रयत्न करें और उनकी स्मृति स्तुति और उनके अवदानों का व्याख्यान करें, इसके साथ-साथ उन सिद्धान्तों के द्वारा युग की समस्याओं को सुलझाने का भी प्रयत्न करें।
- आचार्य महाप्रज्ञ
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