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________________ धर्मास्तिकाय के प्रदेशों में परस्पर सम्बन्ध है । अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय के 21 प्रदेशों का भी यही नियम है। यदि इनके प्रदेशों का सर्वबंध हो तो एक प्रदेश में दूसरे प्रदेशों का अंतर्भाव हो जाएगा। इस स्थिति में प्रदेशों की स्वतंत्र अवस्थिति नहीं रह सकती । " यह सम्बन्ध अनादि अनन्त है। सादि स्वाभाविक बंध के तीन प्रकार बतलाए गए हैं 1. बंधन प्रत्ययिक, 2. भाजन प्रत्ययिक, 3. परिणाम प्रत्ययिक | 1. बंधन प्रत्ययिक -यह स्कन्ध निर्माण का सिद्धान्त है। दो परमाणु मिल कर द्वि-प्रदेशी स्कन्ध का निर्माण करते हैं। इसी प्रकार तीन परमाणु मिल कर तीन प्रदेशी, चार परमाणु मिल कर चार प्रदेशी, यावत् अनन्त परमाणु मिलकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध का निर्माण करते हैं । इस बंधन के दो हेतु बतलाए गए हैं - 1. विमात्र स्निग्धता, 2. विमात्र रुक्षता । समगुण स्निग्ध का समगुण परमाणु के साथ बंध नहीं होता । समगुण रुक्षपरमाणु का समगुण रुक्ष परमाणु के साथ बंध नहीं होता। स्निग्धता और रुक्षता की मात्रा विषम होती है तब परमाणुओं का परस्पर बंध होता है। 22 स्थापना में विसदृश और सदृश दोनों प्रकार के बंधनों का निर्देश है। 23 भगवती में विसदृश बंध का विवरण नहीं है। सदृश बंध का नियम - प्रज्ञापना के अनुसार स्निग्ध परमाणुओं का स्निग्ध परमाणु के साथ तथा रुक्ष परमाणुओं का रुक्ष परमाणुओं के साथ सम्बन्ध दो अथवा उनसे अधिक गुणों का अन्तर मिलने पर होता है। उसका समान गुण वाले अथवा एक गुण अधिक वाले परमाणु के साथ सम्बन्ध नहीं होता। स्निग्ध के साथ स्निग्ध के बंध का नियम स्निग्ध का दो गुण अधिक निध साथ बंध होता है। रुक्ष के साथ रुक्ष के बंध का नियम- रुक्ष का दो गुण अधिक रुक्ष के साथ बंध होता है। 24 उत्तराध्यन चूर्णि में उसे उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया गया है- एक गुण स्निग्ध का तीन गुण स्निग्ध के साथ बंध होता है। तीन गुण स्निग्ध का पांच गुण स्निग्ध के साथ बंध होता है। पांच गुण स्निग्ध का सात गुण स्निग्ध के साथ बंध होता है। इस सदृश बंध में जघन्य वर्जन का नियम लागू नहीं है। रुक्ष के सदृशबंध का भी यही नियम है । 25 - विसदृश बंध के नियम- स्निग्ध के साथ रुक्ष के बंध का नियम - जघन्य गुण का बंध नहीं होता । एक गुण स्निग्ध का एक गुण रुक्ष के साथ बंध नहीं होता । द्विगुण स्निग्ध का द्विगुण रुक्ष के साथ सम्बन्ध हो सकता है। यह समगुण का बंध है। द्विगुण सम्बन्ध में सम का सम्बन्ध और विषम का सम्बन्ध - ये दोनों नियम मान्य हैं। षट्खण्डागम में प्रयोगबंध और विस्रसा बंध का वर्णन व्यवस्थित रूप में मिलता है। 26 प्रज्ञापना- पद, उत्तराध्यन चूर्णि और भगवती जोड़ के अनुसार स्वीकृत यंत्र तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2008 Jain Education International For Private & Personal Use Only 47 www.jainelibrary.org
SR No.524635
Book TitleTulsi Prajna 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages100
LanguageHindi, English
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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