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में विभिन्न मिष्टानों का क्रय-विक्रय होता था। लोग जायफल, कक्कोल, कपूर, लौंग, सुपारी डालकर पान खाते थे।44 पनवाड़ी लोग पान का विक्रय करत थे।45 आयात निर्यात
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से ईसा की छठी शताब्दी- लगभग एक सहस्त्राब्दी के इस ऐतिहासिक कालखण्ड में भारतवर्ष में किन-किन वस्तुओं का आयात-निर्यात किया जाता था, किन-किन वस्तुओं का केवल स्वदेशी व्यापार होता और वे कौन-सी चीजें हैं, जिनका अन्तर्देशीय व्यापार होता-इसकी व्यवस्थित सूचना निशीथ व उसके व्याख्या साहित्य में उपलब्ध नहीं होती, फिर भी जो कुछ वहां विकीर्ण रूप में उपलब्ध होते हैं, उनके आधार पर यह अनुमान अवश्य किया जा सकता है कि उस समय स्वदेशी विनिमय के समान अन्तर्देशिक विनिमय भी होता था। ___ वस्त्र उद्योग की दृष्टि से मथुरा, विदिशा लाट, तोसलि, काक, मलय, चीन आदि प्रमुख क्षेत्र थे। यहां से विविध प्रकार के वस्त्रों का निर्यात होता था। लोग मलय, चीन आदि से वस्त्रों का आयात करते थे। इसी प्रकार कम्बोज एवं कालिय-द्वीप के घोड़े, महाहिमवन्त का गोशीर्षचन्दन, नेपाल के बहुमूल्य रोएंदार कम्बल, पारसउल (ईरान) के चन्दन, अगुरु, चांदी आदि प्रसिद्ध थे। वहां से आने वाले सार्थ एवं व्यापारियों से धनाढ्य लोग इन्हें खरीदते थे।
ईसा की चौथी-पांचवीं शताब्दी में सौपारक बन्दरगाह एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र था। वहां लगभग पांच सौ व्यापारी रहते थे। उनसे कर भी नहीं लिया जाता था।47 निशीथ सूत्र के नवम उद्देशक में पारस, बर्बर, यवन, तमिल, अरब, पुलिन्द आदि देशों की दासियों का उल्लेख मिलता है। इससे स्पष्ट है कि दास-दासियों का क्रय-विक्रय केवल भारतवर्ष में ही नहीं था, अन्य देशों से भी उनका आयात होता था। यातायात के साधन
प्राचीन काल में व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गों से होता था। स्थलमार्ग के व्यापारी भंडी (गाड़ी), बहिलग, काय और शीर्ष-इनका प्रयोग करते थे। निशीथभाष्य में पांच प्रकार के सार्थ का उल्लेख मिलता है।
भंडी, बहिलग भरवह ओदरिय कप्पडिय सत्थो।।50 1. गाड़ी पर सामग्री लेकर चलने वाले 2. ऊँट व बैल पर बोझा ढ़ोने वाले 3. पोटलियों में स्वयं भार वहन करने वाले 4. अपना संबल लेकर चलने वाले 5. कार्पटिक-भिक्षाचर।
तुलसी, प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2008
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