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स्वरूप हैं। मार्क्स के अनुसार मात्र पदार्थ की विद्यमानता है" जबकि गाँधी के लिए नव जीवन की विद्यमानता है। मार्क्सवाद भौतिकवाद पर आधारित है। यह सभी सामाजिक परिवर्तनों की कुंजी, मानव जीवन की भौतिक स्थितियों को मानता है किन्तु इसके विपरीत गाँधी का विश्वास है कि सामाजिक प्रगति का आधार पदार्थ नहीं, मन है । मार्क्स समाजवाद की अपरिहार्यता को आर्थिक आधारों और द्वन्द्वात्मक प्रणाली द्वारा सिद्ध करते हैं। गाँधी व्यक्ति के नैतिक, रूपान्तरण में आधार शास्त्रीय दलीलें प्रस्तुत करते हैं। वर्ग युद्ध और सम्पत्तिशाली वर्गों की सम्पत्ति का बलात अपहरण, समाजवाद के लिए मार्क्सवादी उपाय है। किन्तु गांधीवाद पद्धति में वर्ग सहयोग अहिंसा और न्यायप्रियता को स्वीकार किया गया है।
___ मानवतावाद की परम्परा को स्वीकार करने के कारण मार्क्स मानव विवेक की सर्वोच्चता में विश्वास करते हैं। गाँधी मूलत: अन्तःप्रेरणा वादी हैं। पदार्थ पर आत्मा की सर्वोच्चता ही गाँधीवादी दर्शन की आधारशीला है। गाँधी आरंभ से ही एक सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापक आध्यात्मिक सत्ता को मानकर चलते हैं जिससे ब्रह्म या ईश्वर या परम सत्ता को प्रभावित नहीं किया जा सकता। यह स्वयं सिद्ध है और इसका साक्षात्कार मनुष्य को आन्तरिक अनुभूति के द्वारा ही हो सकता है।
- दूसरी ओर मार्क्स पदार्थ को मूल तत्त्व के रूप में स्वीकार करते हैं और चित्र या आत्मा को पदार्थ की छाया मात्र मानते हैं। मार्क्स के अनुसार पदार्थ आत्मा से श्रेष्ठ और वस्तुनिष्ठ यथार्थ के रूप में, यह वैज्ञानिक और तर्क सम्मत है। उन्होंने आस्था और अन्तः प्रेरणा का स्थान विवेक और विनाश को दिया है। वे मूलतः पदार्थ के दार्शनिक हैं। उपसंहार :
यद्यपि गाँधी और मार्क्स विश्व के शोषण और अन्याय को मिटाने तथा वर्गहीन समाज की स्थापना के समाज लक्ष्य से पारिचालित हैं, फिर भी दोनों भिन्न ध्रुवों पर खड़े हैं। उनमें आधारभूत और तात्विक मतभेद हैं, इसलिए उन्हें मिटाया या सुलझाया नहीं जा सकता।
यद्यपि दोनों ही शोषणमुक्त समाज और गौरवशाली नवीन विश्व की स्थापना का समान लक्ष्य अपनाए हुए हैं, तथापि लक्ष्यों की सिद्धि के लिए उनके द्वारा कल्पित मार्ग पूर्णतया भिन्न हैं। फ्रांस और जर्मनी के वैज्ञानिक दृष्टिवाद से प्रेरणा ग्रहण करते हुए मार्क्स मानव विवेक के द्वन्द्वात्मक प्रयोग के माध्यम से विज्ञान और औद्योगिकी को संयुक्त करके अपने आदर्श समाज "साम्यवादी स्वर्ग" की स्थापना करना चाहते थे। गाँधी
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तुलसी प्रज्ञा अंक 131
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