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________________ आश्चर्य की बात है कि उन्होंने युग-युग से परिचित और अनुभूत सत्य को उस प्रकार सामने रखा कि करोड़ों दीन-हीन, शोषित, अपमानित जनता अद्भुत शक्ति के साथ जाग उठी और संसार के सबसे शक्ति साम्राज्य के विरुद्ध सिर उठाकर खड़ी हो गई। महात्मा गाँधी एक ऐसे संत थे, जो विश्व सम्बन्धी मामलों में सक्रिय थे। वे एक ऐसे धर्मपरायण व्यक्ति थे, जिन्होंने सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करना सिखलाया। उनके पास कोई सम्पत्ति नहीं थी। उनकी संपत्ति थी तो वह प्यार जो उन्होंने जनता को दिया था और जो उन्होंने उससे पाया था। एक साम्राज्य के विरुद्ध अपनी लड़ाई के दौरान भी वे दीन-हीन लोगों की चिंताओं और दुःख-तकलीफों में साझेदारी करने का समय निकाल लेते थे। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उनके बहुमुखी योगदान के संदर्भ में विभिन्न टीकाकारों ने उनकी विविध प्रकार से सहारना की है। उन्होंने उन्हें उदारवादी, राजनैतिक, दार्शनिक, अहिंसक विरोध की राजनीति के प्रणेता, अहिंसक सामाजिक एकीकरण की राजनीतिक के दार्शनिक, परमोत्कृष्ट, राजनैतिक आंदोलनकर्त्ता, जीवन कला-नाटककार, संतो में राजनीतिज्ञ तथा राजनीतिज्ञों में संत, राजनैतिक, बनिया, महान् समाज-सुधारक, हिन्दू-मुस्लिम तथ ब्राह्मण-शूद्र एकता के प्रतीक, महिला-उद्धार के आदर्शवादी-कर्मयोगी, अपने समय के महानतम पत्रकार तथा राममोहनराय जैसे अपने यशस्वी पूर्वजों के स्तर के पूर्व व पश्चिम तथा परम्परा व आधुनिकता के सामंजस्यकर्मा जैसी उपाधियों से उनके अभूतपूर्व योगदान को सराहा है। ___ गाँधी ने कहा था कि जीवन एक प्रेरणा है। इसका लक्ष्य पूर्णता के लिए प्रयासशील रहना है, जो आत्मोपलब्धि से ही सम्भव है। गाँधी जी के सम्बन्ध में रोम्याँ रोलाँ का कथन है- गाँधी जी के क्रियाकलाप को समझने के लिए यह हृदयंगम कर लेना चाहिए कि उनका सिद्धान्त एक वृहत् भवन के सदृश है जिसमें दो भिन्न-भिन्न मंजिलें हैं। नीचे ठोस आधार है धर्म की मूल भित्ति। यह राजनीतिक एवं सामाजिक आन्दोलन पर गाँधी के अनुसार सदा जागरूक एवं चौकन्नी जनता ही शोषण का विरोध कर सकती है। गाँधी जी ने पूंजीपति वर्ग और करोड़ों भूखों के बीच की चौड़ी खाई को खत्म करने के उद्देश्य से "निक्षिप्त-सम्पत्ति का निरूपण किया जिसके अन्तर्गत यदि किसी आदमी के पास जितना उसे चाहिए उससे ज्यादा धन या सम्पत्ति हो, तो उसे अपनी अतिरिक्त धनसम्पत्ति का संरक्षक बना दिया जाए और इस सम्पत्ति के उपभोक्ता का अधिकार उन सभी को है जिसे उसकी आवश्यकता हो । यदि कोई ट्रस्टी ट्रस्ट के कारोबार में गफलत करे तो उसके साथ असहयोग आन्दोलन किया जाए। इसके लिए उन्होंने "हृदय 62 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524627
Book TitleTulsi Prajna 2006 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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