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भारतीय संस्कृति में श्रमण संस्कृति का योगदान
योगेश कुमार जैन
प्रायः अंग्रेजी के "कल्चर" शब्द के पर्याय के रूप में "संस्कृति" शब्द को स्वीकार किया जाता है। जिस प्रकार "एग्रीकल्चर" अपनी भावात्मक संसार-अवस्था को प्राप्त कर कल्चर बन गया अर्थात् जीवन की मूलभूत उपयोगिता उदरपूर्ती परिष्कृत होकर, निखरकर कल्चर अर्थात् हमारी संस्कृति बनी। संस्कृति शब्द "सम्" उपसर्ग पूर्वक 'कृ'- करणे धातु में सुट का आगम करके क्तिन् प्रत्यय लगाने पर संस्कृति शब्द बनता है। सम् और कृति इन दो शब्दों का अर्थ 'सम' अर्थात् सम्यक् और पूर्ण रीति से, कृति अर्थात् किये गये कार्य। जिस प्रकार अच्छी तरह से जोता गया खेत निश्चित रूप से अच्छी फसल देता है, उसी प्रकार विभिन्न साधनाओं से परिपक्व हुआ व्यक्तिगत या जातीय जीवन संस्कृत जीवन कहा जा सकता है। यद्यपि कुछ शब्द-गत साम्य होने पर भी भारतीय और पाश्चात्य सांस्कृतिक चेतना में जो मौलिक अन्तर है उसे भुलाया नहीं जा सकता। पश्चिम की सांस्कृतिक चेतना बहिर्मुखी, यथार्थमूलक और अन्ततः भोगात्मक रही है, जबकि हमारी जीवन दृष्टि सदा अन्तर्मुखी-आत्मपरक, आदर्शमूलक और त्यागप्रधान रही है। ऑक्सफोर्ड डिक्सनरी में 'संस्कृति-कल्चर' शब्द की व्याख्या निम्न शब्दों में की गई है"मस्तिष्क, रुचि और आचार-व्यवहार की शिक्षा और शुद्धि, इस प्रकार शिक्षित और शुद्ध होने की अवस्था, सभ्यता का बौद्धिक पक्ष, विश्व की सर्वोत्कृष्ट ज्ञात और कथित वस्तुओं से स्वयं को परिचित कराना है।"
'आप्टे' के संस्कृत शब्द कोष में 'संस्कृ' धातु के अनेक अर्थ दिये हैंसजाना, संवारना, पवित्र करना, सुशिक्षित करना आदि।
जहां तक संस्कृति के मूल मन्तव्य और परिभाषा की बात है, विभिन्न विद्वानों ने इस दिशा में अपने मौलिक और प्रामाणिक विचार प्रकट किये हैं। यथा- "संसार भर में जो भी सर्वोत्तम बातें जानी या कही गयी हैं, उनसे अपने
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल- जून, 2006
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