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10. निश्चयकारिणी भाषा नहीं बोलना- भगवान महावीर ने मुनियों को सत्य महाव्रत की सुरक्षा के लिए एक विशेष निर्देश दिया कि वह निश्चयात्मक भाषा का विवेक रखे। मुनि जब तक केवलज्ञानी नहीं होता तब तक वह छद्मस्थ होता है। सभी घटनाओं का उसे निश्चित ज्ञान नहीं होता। इसलिए भूत, वर्तमान और भविष्य के विषय में निश्चित बोलने से असत्य का दोष लग सकता है। उदाहरणत: 'मैं कल आऊँगा', 'मैं अमुक काम करूंगा' आदि । हो सकता है परिस्थिति इस प्रकार बदले कि कही हुई बात न हो पाए। इसलिए निश्चयकारिणी भाषा नहीं बोलनी चाहिए। इन बातों को इस प्रकार कहा जा सकता है- 'कल आने का भाव या विचार है, 'अमुक काम कल करने का भाव या चिन्तन है'- अतीत, वर्तमान और अनागत काल सम्बन्धी जिस तथ्य की सम्यक् जानकारी न हो या उसमें शंका हो 'उसे यह ऐसा ही है' इस प्रकार निश्चय रूप से नहीं कहना चाहिए। निश्चयकारिणी भाषा न बोलने के प्रसंग में वृत्तिकार का अभिमत इस प्रकार है
अन्नह परिचिंतिजइ, कजं परिणमइ अन्नहा चेव। विहिवसयाण जियाणं, मुहुत्तमेंव पि बहुविग्धं ॥ (सुखबोधा, पत्र 1)
अर्थात् -प्रत्येक प्राणी भाग्य के अधीन है, कर्मों के अधीन है। वह सोचता कुछ है और हो कुछ और ही जाता है। जीवन का प्रत्येक क्षण विघ्नों से भरा पड़ा है। इसलिए भविष्य के सम्बन्ध में निश्चत रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।)
निश्चियकारिणी भाषा के वर्जन का एक लाभ यह भी है कि इससे वक्ता की बात का मूल्य बढ़ जाता है। इसलिए वह पूज्यता की अर्हता प्राप्त करता है। इसके विपरीत, जो व्यक्ति बार-बार निश्चयकारिणी भाषा बोलता है, सही न निकलने पर उसकी बात बार-बार झूठला दी जाती है। यह उसके समाधि (मानसिक क्लेश) उत्पन्न करने का कारण बनता है। ____ 11. आरोप नहीं लगाना- किसी भी व्यक्ति पर उसके आचार को लेकर मिथ्या आरोप नहीं लगाना चाहिए। किसी में कोई कमी हो, तो किसी के दिल में चोट पहुँचे वैसा नहीं करना चाहिए। उदाहरणार्थ, कोई गृहस्थ या भेषधारी साधु अव्यवस्थित आचार वाला हो तो भी यह कुशील है', ऐसा नहीं कहना चाहिए। दूसरों के चोट लगे, अप्रीति उत्पन्न हो वैसा व्यक्तिगत आरोप अहिंसक व्यक्ति के लिए उचित नहीं होता।
12. उपहास नहीं करना -(न तं उवहसे मणी) प्रत्येक व्यक्ति की बौद्धिक और शारीरिक स्थिति भिन्न-भिन्न होती है। कोई व्यक्ति बौद्धिक दृष्टि से कमजोर होता है। वह किसी बात को आसानी से नहीं समझ पाता या अन्यथा समझ लेता है तो उसका उपहास
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल – जून, 2006
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