________________
४. शास्त्रों में मांगलिक द्रव्य
भारत के प्राचीन शास्त्रों में अनेक मांगलिक द्रव्यों का उल्लेख है, जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार उदिष्ट है।
पूर्ण कुंभ, द्विज (ब्राह्मण), वेश्या, शुक्लधान्य, दर्पण, दही, मधु, ताजा पुष्प, दूर्वा, श्वेत अक्षत, वृषभ, गजेन्द्र, तुरग, प्रज्वलित अग्नि, सोना, पर्ण, पके हुए फल, नारी, प्रदीप, उत्तममणि, मुक्ता, पुष्पमाला, चन्दन आदि का दर्शन मंगल माना जाता है। राजहंस, मयूर, खज्जन, शुक, पिक, कबूतर, शंख, चक्रवाक, काली गाय, श्वेतचमर वाली चंवरीगाय, वत्सयुक्ता धेनु और पताका आदि दक्षिण भाग में शुभदायक है
ब्रह्मवैवर्तपुराण में ही अन्य मंगलद्रव्यों का उल्लेख है। दिव्याभरणभूषित पति एवं पुत्रों से सम्पन्न साध्वी नारी, शुक्लपुष्प, माला, धान्य खंजन आदि शुभ है। दक्षिण भाग में प्रज्वलित अग्नि, विप्र, वृषभ, गज, वत्सप्रयुक्ता, धेनु, राजहंस, वेश्या, पुष्पमाला, पताका, दधि, पायस मणि, सुवर्ण, रजत, मुक्तामणि, चन्दन, घृत, फल, लाजा, दर्पण, श्वेतकमल, कमलवन आदि शुभ मांगलिक वस्तुएं हैं। मांगलिक वस्तुओं में दूर्वा, दधि, घी, जलपूर्ण कुंभ, सवत्सा धेनु, वृषभ, सुवर्ण, गोबर से युक्त भूमि, स्वस्तिक, अक्षत, मधु, ब्राह्मणकन्या, श्वेतपुष्प, शमी, हुताशन, चन्दन, सूर्यबिम्ब और अश्वत्थवृक्ष आदि का उल्लेख है। बौद्ध वाङ्मय के ललितविस्तर एवं दिव्यावदान में अनेक मांगलिक द्रव्यों का निर्देश मिलता है। जैन वाङ्मय में इनका प्रभूत वर्णन है। ५. अष्ट मंगल
___भारतीय परम्पराओं में किंचित् भेद मात्र से आठ मंगल द्रव्यों का उल्लेख मिलता है। वैदिक परम्परा के अनेक ग्रंथों में अष्टमंगल का उल्लेख है
मृगराजो वृषो नाग: कलसो व्यंजनन्तथा। वैजयन्ती तथा भेरी दीप इत्यष्टमंगलम्॥
अर्थात् मृगराज (सिंह) वृषभ, श्रेष्ठ हाथी या श्रेष्ठ सर्प, कलश, व्यंजन (शुभलक्षण), वैजयन्ती, भेरी तथा दीप ये आठ मंगल होते हैं। किंचित् अंतर मात्र से अष्टमंगल का अन्यत्र भी उल्लेख मिलता है
लोकेऽस्मिन् मंगलान्यष्टौ ब्राह्मण्ये गोर्हताशनः । हिरण्यं सर्पिरादित्य आपो राजा तथाष्टमः ॥3
अर्थात् ब्राह्मण, गौ (गाय और वृषभ), प्रज्वलित अग्नि, हिरण्य सर्पि (घृत) सूर्य, जल और राजा ये आठ मंगल हैं।
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल- जून, 2006
-
- 13
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org